आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की शरद पूर्णिमा आज 30 अक्तूबर को मनाया जा रहा है. वहीं स्नानदान की पूर्णिमा 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा. शरद पूर्णिमा के दिन 16 कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा का विशिष्ट महत्व है. क्योंकि यह एक माह में दूसरी पूर्णिमा है. पहली पूर्णिमा एक अक्टूबर को थी. यह संयोग मलमास के कारण बना हुआ है. शरद पूर्णिमा धर्म तथा अध्यात्म की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है. हालांकि बता दें कि हिंदू धर्म में हर महीने आने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. परंतु इन सभी में शरद पूर्णिमा का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना गया है.
कहते हैं कि इस पूर्णिमा का चन्द्रमा, सोलह कलाओं से युक्त होता है. इस दौरान चन्द्रमा से निकलने वाली किरणों कि प्रभा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित है. जो सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता रखती है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात अमृत वर्षा होती है. इसमें लोग खुले आकाश तले खीर बना कर रखते हैं. जिसे दूसरे दिन लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है.
शरद पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा भी कहते हैं. वैज्ञानिक मतों के अनुसार शरद पूर्णिमा की तिथि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक रहता है और रात को चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण की मात्रा सबसे ज्यादा होती है. जो मनुष्य को कई तरह बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद होती है. चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होने के कारण शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखा जाता है. रात भर खीर में चंद्रमा की किरणें पड़ने के कारण खीर में चंद्रमा की औषधीय गुण आ जाती हैं. फिर अगले दिन खीर खाने से सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
इस बाबत पुजारी आचार्य आशुतोष पाण्डेय के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होते हैं. अपनी किरणों से अमृत की बूंदे पृथ्वी पर गिराते हैं. शरद पूर्णिमा की रात को खुले आसमान के नीचे चावल का खीर रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण शरद पूर्णिमा की तिथि पर ही वृंदावन में सभी गोपियों संग महारास रचाया था. इस वजह भी शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है. शरद पूर्णिमा के दिन मथुरा और वृंदावन सहित देश के कई कृष्ण मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं.
शरद पूर्णिमा का मुहूर्तज: 30 अक्टूबर की शाम 05:47 मिनट से 31 अक्टूबर की रात 08:21 मिनट तक है.