लॉकडाउन में घुंघरुओं की आवाज हुई लॉक, लौंडा बेरोजगार हुआ कोरोना तेरे लिये

फाइल फोटो

छम-छम करते घुंघरू टूट कर बिखरने लगते हैं और लगातार थिरकते कदमों को घायल कर जाते हैं, तब तक उनकी बलखाती कमर पर लोग निहाल हो चुके होते हैं. उनकी अदाओं पर नोट लुटाने वाले पाबंदियों के बावजूद बाज नहीं आते. दिल लूट लेने वाले उन लोगों का दिल भी इन दिनों घुंघरू की तरह टूट चुका है. कोरोना काल का कहर है. लग्न-मुहूर्त होते हुए भी शहनाई खामोशी है. तीन चार-महीने की कमाई में ही पूरे साल का गुजारा होता है, जिस पर पानी फिर गया. लॉकडाउन के कारण सांस्कृतिक सामाजिक समारोहों पर पाबंदी है. इसका बुरा असर लोक कलाकारों पर भी पड़ा है. उन्हीं कलाकारों में से एक लौंडा भी हैं, जो पुरुष होते हुए भी स्त्री का वेश धारण कर अपनी अदाओं पर सबकी वाहवाही लूटने पर मजबूर कर देते है. ऐसे में भोजपुरी अंचल की लोक संस्कृति की पहचान लौंडा नाच के नर्तकों की घुंघरूओं की थाप भी लॉकडाउन में लॉक हो गई है. कोरोना संक्रमण के कारण लौंडा नाच के कलाकार बेरोजगार हो गए हैं. शादी विवाह में बैंड बाजों की धुनों पर थिरकने वाले लौंडो की पांव फिलवक्त पूरी तरह से थम गई है. लग्न में लौंडो की थिरकते पांव की कमाई से ही इनके परिवार की पूरे वर्ष की जीविका चलती है. लेकिन इस वर्ष लॉकडाउन की वजह से वर्ष भर की कमाई ही चली गई. मार्च, अप्रैल व मई महीनों के लग्न में शादी विवाह नहीं होने से इन्हें आर्थिक रूप से काफी नुकसान पहुंचाया है.

भोजपुरी शेक्सपियर भिखारी ठाकुर व महेंद्र मिसिर के सामा-चकेबा, झिंझिया, पावरियां, लोरिकायन, गौड़ऊ, झूमर जैसे लोकनृत्यों के साथ भोजपुरी संस्कृत की व सामाजिक लोक परंपराओं से जुड़े लौड़ा नाच के कलाकार अब तो मानसिक परेशानियां भी झेलने को अभिशप्त हैं. सबसे बड़ी समस्या उन लौंडा कलाकारों के समक्ष उत्पन्न हुई है. जो यूपी, बंगाल या झारखंड से लग्न शुरू होने से पहले ही यहां आ गए थे. लौंडा नाच के कलाकारों के साथ बिहार के विभिन्न शहरों और कस्बों में रहने वाली नर्तकियों के समक्ष भी भुखमरी की स्थिति उत्पन्न होने लगी है. लॉकडाउन खुलने की उम्मीद लिए बैठे लौंडा नाच के कलाकारों द्वारा अबतक कोई अन्य धंधा भी अपनाया नहीं जा सका है. लौंडा नाच से जुड़े पुराने कलाकारों की माने तो उनके जीवन में कभी ऐसा दुर्दिन समय नहीं आया था. रोहतास के डिलियां के लौंडा नाच के कलाकार 72 वर्षीय उमा राम कहते हैं कि 35 वर्षों तक लौंडा नाच में नर्तक रहा. फिलहाल 16 -17 वर्षो से बैंड पार्टी चला रहें है पर ऐसा दुर्दिन समय कभी देखने को नहीं मिला. लौंडा ही नही, बैंड पार्टी व लौंडा नाच के कलाकारों के लिए 2020 सबसे दुर्दिन वर्ष है. नवाबों की नगरी कोआथ के रहने वाले अच्छेलाल पासवान बताते हैं कि 10 वर्षों से लौंडा नाच का हिस्सा हैं. नाच की कमाई से ही पत्नी व दो बच्चों का जीविका आराम से चल जाता था. कभी कोई अन्य काम करने की जरूरत नहीं पड़ी. पर इस वर्ष दूसरे के घर में मजदूरी करने की विवशता है, आखिर जो परिवार का खर्च भी तो चलाना है.

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रोहतास के संझौली के बुचन राम, हसनाडीह के रविन्द्र मल्लाह सहित लौंडा नाच के कई कलाकारों ने बताया कि मार्च से मई तक करीब दो दर्जन सट्टा था, जिससे 25 से 30 हजार की कमाई आराम से हो जाती. अब बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई अन्य काम तलाश रहे हैं. यही नही नृत्य परंपरा से जुड़ी नर्तकियां भी लॉकडाउन में बेरोजगारी की मार झेलने को विवश है. इनके समक्ष कोई अन्य धंधा भी नहीं. नतीजा भुखमरी की स्थिति उत्पन्न होने लगी है. नृत्य परंपरा के नाच पार्टियों में बिहार के रोहतास जिले के नटवार जैसे छोटे कस्बे का नाम पहले आता है, यही कि थी मशहूर नृत्यांगना बिजली रानी.

इसके साथ ही  भोजपुरी अंचल के संझौली, बिक्रमगंज, दिनारा, गंजभड़सरा, नासरीगंज, अमियावर, मिश्रवालिया, इटिम्हा, बडीहा, सासाराम, भभुआ, मोहनिया, आरा, छपरा, बक्सर जैसे जिलों में सैकड़ों नाच पार्टियां हैं. जिसमें हजारों नर्तकियों के जीविका का आधार नाच ही है. बारातों में नृत्य कला की जौहर दिखा ये अपनी जीविका चलाती हैं. लेकिन लॉकडाउन से फिलहाल इनका अपना जीविका का चलाना भी मुश्किल हो गया. भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के मंडली में कार्य कर चुके और उम्र की शतक लगाने वाले छपरा के रामचंद मांझी कहते है, पिछले डेढ़ दशक में लौंडा नाच की मांग तो वैसे ही कम हो गई है. लेकिन इस वर्ष दो कोरोना की कहर ने लौड़ा की आजीविका पर कहर ही ढा दिया है. सौ वर्षों में ऐसी दयनीय कभी भी लोक कलाकारों की नहीं हुई थी.

प्रमोद टैगोर, वरिष्ठ पत्रकार

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