मैं बक्सर हूँ.. सदियों से अपने स्वरूप में बदलाव करता मैं आज भी अपनी एक अगल पहचान लिए खड़ा हूँ..

मैं बक्सर हूँ!
सदियों से अपने स्वरूप में बदलाव करता मैं आज भी अपनी एक अगल पहचान लिऐ खड़ा हूँ. देश के चर्चित तीर्थ स्थलो में शुमार मैं अपने अवदानों के लिऐ विश्वविख्यात रहा हूँ. मैं वही हूँ जहाँ विश्व के प्रथम तत्वदर्शी, वैज्ञानिक, मंत्रद्रष्टा एवं अपर सृष्टि के संस्थापक महर्षि विश्वामित्र ने अपना आश्रम बनाया था. पुराणों में मेरे सिद्ध भूमि को सिद्धाश्रम, वेदशिरा आश्रम, वेदगर्भा पुरी, व्याघ्रसर आदि नामों से पुकारा गया. स्कंद पुराण, ब्राह्मण पुराण एवं नारद पुराण में मुझे करूष क्षेत्र का दर्जा मिला. जिसने मेरी धार्मिक परिपाटी को और सुविख्यात किया.

हां मैं वही बक्सर हूँ जहां भगवान वामन ने पृथ्वी को दानवों के हाथ में जाने से बचाया था. मेरी ही धरती पर महर्षि विश्वामित्र ने शिक्षा देकर भगवान राम को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाया था. मैंने ही एक बादशाह को गुलाम के हाथ हराया था और एक चिश्ती को एक दिन का बादशाह बना जिसने चमड़े का सिक्का चलाया था.

हां मैं वही बक्सर हूँ जो अंग्रेजों से युद्ध हारने के बाद भारत की गुलामी का मौन गवाह बना. मैनें ही बिहार को पहला ध्वनि एवं प्रकाश केन्द्र दिया. देश में कहीं भी अपराधी चाहे कितना भी बडा़ क्यों न हो उसके लिए मौत का फंदा मैं ही तैयार करता हूँ. हाँ मैं बक्सर हूँ!

बक्सर का कमलदह पोखरा

बक्सर आज बिहार का एक विकसित नगर है. जहाँ आज भी धार्मिकता और पौराणिकता के साथ ऐतिहासिकता कूट-कूट कर भरी हुई है. मेलों के शहर के नाम से मशहूर बक्सर ने आज देश में अपनी अलग पहचान बनाई है. बिहार का यह क्षेत्र अपने भौगोलिक परिस्थितियों से परिपूर्ण रहा है. गंगा, कर्मनाशा, ढोरा एवं दुर्गावती जलबंधो के बीच के इस क्षेत्र ने मालवा राजा भोज को आकर्षित किया. उन्होंने यहाँ भोजपुर में नवरत्न गढ़ का किला बना कर इसे अपनी राजधानी बनाया. उसी समय बक्सर में गंगा तट पर उंचे स्थान पर एक छोटे किले का भी निर्माण किया गया. क्षेत्र में चेरों की संख्या अधिक होने के कारण काशी और मगध क्षेत्र के बीच रहने के बावजूद कभी किसी के अधिपत्य में नहीं रहा. कालांतर में चेरों जनजाति इस क्षेत्र से विलुप्त होते गए और उनकी संस्कृति भी.

बक्सर का रामरेखा घाट

चौसा के तट पर हुए हुमायूँ और शेरशाह के यूद्ध में चेरों के सरदार मरहहा की भूमिका प्रभावी मानी जाती है. जिसके कई राज आज भी राजपुर के किले में दफ्न है. समय बीतता गया और सभ्यताएं एवं संस्कृतियाँ बदलती गयी. आजादी के बाद बक्सर शाहाबाद जिले का अनुमंडल बना. इसके बाद शुरू हुई इसे जिला घोषित करने की मांग. बदलते समाज के साथ कदमताल करता बक्सर अब जिला बनने के लिए अग्रसर हो चला था. बक्सर को जिला घोषित करने के लिए सामाजिक एवं राजनैतिक लोगों ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था.

आखिरकार तत्कालीन विधायक मंजु प्रकाश ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालु प्रसाद से यह मांग मनवा ली. बक्सर को 17 मार्च 1991 को जिला घोषित होते ही लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी. आगे चलकर मंजू प्रकाश बिहार महिला आयोग की पहली चेयरमैन बनी और जिले का नाम रौशन किया. आज बक्सर जिला पुरे 28 साल का हो चुका है.

बक्सर चौक

बक्सर नें देश को आचार्य शिवपूजन सहाय, डा सचिदानंद सिन्हा जैसे विभूतियों, महान पुरातत्व शोधकर्ता सीताराम उपाध्याय को दिया. कला और संस्कृति को अपने अंदर समेटे बक्सर की भूमि पर शास्त्रीय संगीत के बेताज बादशाह भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद विस्मिल्लाह खां को जन्म भी दिया. आज भी बक्सर जिलेवाशी पुरे देश में अपनी मेहनत, लगन, सामाजिकता, शिक्षा, कला और क्रिडा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखते है.

साभार- कपीन्द्र किशोर

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