कैमूर पहाड़ी पर स्थित रोहतासगढ़ किला परिसर में वनवासी कल्याण आश्रम की 14 वां एक दिवसीय रोहतासगढ़ तीर्थ मेला रविवार को आयोजित हुआ। देश के कई राज्यों से पहुंचे हुए वनवासी समुदाय के लोगों ने किले में स्थित प्राचीन करम वृक्ष की पूजा अर्चना की, पूजा अर्चना करते समय वनवासी महिलाओं ने मानर थाप पर परंपरिक नृत्य किया। वनवासी समुदाय के लोग करम वृक्ष को ब्रह्म देवता मानते हुए हर साल इसकी पूजा करते हैं, वनवासी समुदाय के लोगों का भिन्न-भिन्न स्थानों से जनसमूह यहां एक दिन पहले से ही ईकट्ठा होना शुरू कर दिए थे। दूर-दूर बसे हुए उरांव जनजाति के लोग अपने समुदाय के लोगों से मिलकर एक दूसरे में खुशी बांटते हैं।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि झारखंड राज्यसभा सांसद समीर उरांव, छत्तीसगढ़ के पूर्व वन मंत्री गणेश राम भगत एंव वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदेव उराँव रहे।
कई राज्यों के वनवासी समुदायों ने अलग-अलग परिधान में सुज्जित हो अपनी पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए ढ़ोल-नगाड़ा एवं झाल बजाते हुए अपनी स्थानीय भाषा में गीत-नृत्य की प्रस्तुति किए। वनवासियों के मानर थाप के धुनों पर लोग मंत्रमुग्ध हो गये। उरांव जनजाति के वनवासियों ने करम वृक्ष का पूजा कर वहां के मिट्टी भी अपने साथ लिए।
मेला में उड़ीसा, बंगाल, अंडमान निकोबार, केरल, उत्तरप्रदेश, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, झारखंड के लातेहार गुमला, रांची, गढ़वा जैसे स्थानों से आए उरांव जनजाति के वनवासियों ने अपने पूर्वजों की धरती को सादर नमन किया।
वनवासी कल्याण आश्रम के क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री महरंग उरांव एवं जिला मंत्री प्रेम कुमार पाठक ने कहा कि आदिवासी समुदाय को स्वागत करते हुए हमें गर्व प्राप्त हो रहा है कि लोग यहां पहुंचकर महोत्सव को मनाने में सहयोग प्रदान किया। मौके पर स्थानीय प्रशासन, प्रखंड विकास पदाधिकारी मनोज पासवान, अंचलाधिकारी विकाश कुमार सहित रोहतास थाना के एसआई संजय कुमार के नेतृत्व की मुस्तैदी देखी गई। 47 बटालियन सीआरपीएफ बंजारी के कम्पनी कमांडर रवि रंजन नेतृत्व में सीआरपीएफ के जवान चप्पे-चप्पे पर मुस्तैद रहे।
बता दें कि जनश्रुतियों के अनुसार रोहतासगढ़ किला का निर्माण राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र रोहिताश्व द्वारा किया गया था। वनवासी समुदाय उरांव अपने पूर्वजों का यह किला मानते हैं। यहां असम, बंगाल, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, झारखंड प्रांत से वनवासी समुदाय के लोग प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा को अपने पूर्वजों की धरती को नमन करने आते हैं।
वनवासी समुदाय उरांव का मानना है कि हमारा उदगम स्थल रोहतासगढ़ ही है। जहां से मुगल काल में युद्ध में हार के बाद विस्थापित हो हमारे पूर्वज इस धरती से भारत के अन्य प्रांतों में जाकर बस गए थे। किला परिसर में एक अति प्राचीन करम का वृक्ष है, जिसकी पूजा अर्चना के लिए आदिवासी समुदाय के लोग यहां आते हैं और अपने पूर्वजों की धरती को नमन करते है। साथ ही भारत के विभिन्न भागों के अलावे मारिसस, सुरीनाम आदि देशों में कालापानी सजा के दौरान बस चुके आदिवासी समाज के लोग रोहतास किला की मिट्टी को ले जाकर अपने घरों में रखना अपना सौभाग्य समझते हैं। गत तेरह वर्षों से प्रत्येक वर्ष पूर्णिमा को रोहतासगढ़ तीर्थ यात्रा महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
रिपोर्ट: मुकेश पाठक