भोजपुरी गंवई संस्कृति के साज ‘भिखारी ठाकुर’

अनगढ़ हीरा भिखारी ठाकुर भोजपुरी की गंवई संस्कृति के साज थे। उन्होंने गांव से जुड़ी कला-संस्कृति को न सिर्फ उन्होंने जन-जन तक पहुंचाने का काम किया, बल्कि समाज मे व्याप्त कुरीतियों पर अपनी रचनाओं के माध्यम से जोरदार प्रहार कर मिटाने का प्रयास किया। उनकी रचनाओं ने समाज को एक नई दिशा देने का काम किया। करुणा, प्रेम, गीतात्मकता, विषमता विरोध, महिला और दलित विमर्श उनकी रचनाओं की प्रमुख विशेषता है। भिखारी ठाकुर के नाच मंडली व नाटकों ने सामाजिक क्रांति द्वारा बेबस स्त्री को मुक्त कराने का प्रयास किया।

नारी चरित्र का सृजन: भोजपुरी शेक्सपियर ने अपनी रचनाओं व नाटकों का आधार तत्कालीन परिवेश को तो बनाया ही, गांव की नारियों की समस्याओं को बड़ी नजदीक से देखा-परखा और उनकी आंतरिक व्यथा व चरित्र को सृजित किया। ‘विधवा मिलाप’ में भिखारी ठाकुर ने दूरदर्शी सोच द्वारा समाज के घाव को चिकित्सकीय छुरी से आपरेट दिया। छल-कपट, पारिवारिक विघटन और भौतिकता के दौर में रिश्तों की मर्यादा का अकल्पनीय पतन को आज के समय का प्रतिफल बताया है। ‘बेटी वियोग’ में बेटियों की दुर्दशा पर गंभीर चिंतन है।

उनकी रचना ‘बेटी बेचवा’ में बेमेल विवाह में स्त्रियों के उस दास्तां को उजागर किया है, जिसमें कम उम्र की लड़की की शादी वृद्ध व लाचार पुरुष से चंद रुपयों की खातिर कर दी जाती है। बूढ़े से ब्याही गयी लड़की न तो पत्नी बन पाती है और न ही एक औरत। ‘विदेसिया’ में स्त्री समाज के ज्वलंत कठिनाई को उजागर किया गया है। अकेली ब्याहता औरत घर में पति वियोग में घुंट-घुंट कर मरने को विवश है। आर्थिक अभाव के कारण भी उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गांव के मनचले उस पर बुरी नजर रखते है। नाटक ‘गंगा स्नान’ में वृद्धा स्त्री के शोषण के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है। मसलन अपनी रचनाओं के द्वारा भिखारी ठाकुर ने न सिर्फ समाज में स्त्रियों की सामाजिक दुर्दशा को संजीदगी के साथ उठाने का प्रयास किया है, बल्कि सामाजिक विकृति या कुरीति पर चोट भी की है। आज के बदलते परिवेश में भी उनकी रचनाओं से सीख लेने की दरकार है।

भिखारी ठाकुर के कई रचनाओं को आवाज देने वाली लोकगायिका चंदन तिवारी कहती है कि, भिखारी ठाकुर की रचनाओं में जो धार है, उससे सामाजिक कुरीतियों पर जमकर प्रहार करती है। भिखारी ठाकुर की करीब 29 रचनाएं हैं। भिखारी शंका समाधान या भिखारी हरी कीर्तन जैसी कुछ रचनाओं को छोड़ दे तो अधिकाँश नाटक ही हैं। उन नाटकों में जो गीत है जो गेय है, जिन्हें वर्षों से गाया जा रहा है उनपर गौर करने पर ये साफ़ दीखता है कि वे ज्यादा से ज्यादा रचनाएं स्त्री स्वर के उभार को समर्पित किये। भोजपुरी भाषी इलाका जहाँ स्त्रियां ज्यादातर बंदिश में ही रहीं, देहरी की परिधि में कैद रहती थी उस इलाके की महिलाओं की इच्छा आकांक्षा का उभार करते रहे। उनके लिए प्रेम और मुक्ति का गीत रचते रहे। वे इतनी गहराई और डूबकर यह काम करते रहे कि कई बार लगता है कि जैसे वह स्त्री ही थे। उनका बारहमासा पढ़िए या कजरी या कि झूमर,सबमे वे स्त्री मन को कैसे उभारते हैं। लेकिन इसमें ख़ास बात यह रही कि भिखारी ने हमेशा स्त्री मन का उभार किया, तन का नही।

मालूम हो कि, भिखारी ठाकुर मूल रुप से कवि व गीतकार भी थे। उनमें बेहतरीन अभिनय की क्षमता थी। नाटक के संवाद के रचना भी करते थे। नाटक के पात्र को संगठित कर उन लोगों को अभिनय, गायकी और नाचे के प्रशिक्षण देते थे। भोजपुरी भाषा में, कैथी व देवनागरी लिपि में लिखते भी थे। उनके द्वारा लिखा हुआ कुल 29 किताब / रचना प्रकाशित हुआ था।

भिखारी ठाकुर के किताब/रचना: बिरहा बहार, राधेश्याम बहार नाटक, बेटी-वियोग नाटक, कलियुग प्रेम नाटक, गबरघिचोर नाटक, भाई-बिरोध नाटक, श्री गंगा स्नान नाटक, पुत्रबध नाटक, नाई बहार, ननद-भौजाई संवाद, भांड़ के नकल, बहरा-बहार नाटक, नवीन बिरहा नाटक, भिखारी शंका समाधान, भिखारी हरिकीर्तन, यशोदा सखी संवाद, भिखारी चौयुगी, भिखारी जै हिन्द खबर, भिखारी पुस्तिका सुची, भिखारी चौवर्ण पदबी, विधवा-विलाप नाटक, भिखारी भजनमाला, बूढशाला के बयान, श्री माता भक्ति, श्री नाम रतन, राम नाम माला, सीताराम परिचय, नर नव अवतार, एक आरती दुनिया भर के।

बिहार राष्ट्रभाषा परिषद ‘भिखारी ठाकुर रचनावली’ नाम से भिखारी ठाकुर के रचना / लेख को एक जगह प्रकाशित किया है। जो दो भाग में वर्गीकरण है।

लोकनाटक: बिदेसिया, भाई-बिरोध, बेटी-बियोग, विधवा-बिलाप, कलियुग प्रेम, राधेश्याम बहार, गंगा-स्नान, पुत्र-बध, गबरघिचोर, बिरहा-बहार, नकल भाड़ आ नेटुआ के, ननद भउजाई।

भजन-कीर्तन-गीत-कविता: शिव-विवाह, भजन कीर्तन -राम, रामलीला गान, भजन कीर्तन -कृष्ण, माता भक्ति, आरती, बूढशाला के बयान, चौवर्ण पदबी, नाई बहार, शंका समाधान, विविध, भिखारी ठाकुर परिचय।

भिखारी ठाकुर की जीवनी:  भिखारी ठाकुर का जन्म सारण जनपद के कोटवा पट्टी रामपुर पंचायत के कुतुबपुर दियारा में 18 दिसंबर 1887 को हुआ था। गो-चारण और जातिगत पेशा में प्रवृत्ति के साथ पढ़ने की रुचि बढ़ी। दिघवारा प्रखंड के फकुली निवासी रामलीला रामायण के रचयिता बाबू बसुनायक सिंह को काव्य गुरु मानकर गीति नाटकों की रचना एवं नाच मंडली की स्थापना के साथ मंचन व अभिनय शुरू किया।

भारतीय नृत्य कला मंदिर के सभागार में 29 अगस्त 1964 को एक राजकीय समारोह में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल की उपस्थिति में भिखारी ठाकुर को ताम्रपत्र व अंग-वस्त्र देकर सम्मानित किया गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय शाहाबाद के जिला कलक्टर ने उन्हें ‘राय बहादुर’ की संज्ञा दी थी। 1947 ई. में राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें ‘भोजपुरी का शेक्सपीयर’ व ‘अनगढ़ हीरा’ की संज्ञा से नवाजा। 10 जुलाई 1971 ई. की संध्या में उनकी मृत्यु हुई थी।

साभार- प्रमोद टैगोर, नबीन चंद्रकला कुमार 

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