क्या नहीं था। उनके आंगन में अपने जैसा हर संस्कार व सभ्यता झिलमिला रहे थे। वही अपनापन वही भाव। बिल्कुल भोजपुरी माटी में सराबोर। मॉरीशस प्रवास के दौरान वहां के लोगों ने ‘खाँटी अपनापन’ का बोध करा दिया। पता ही नहीं चला कि हम अपने आंगन (भोजपुरी भाषी क्षेत्र) में है या फिर उनके आंगन (मॉरीशस) में। समंदर पार अपने ही आंगन के गिरमिटिया बन कर गये लोगों ने मॉरीशस को ‘भोजपुरिया स्वर्ग’ बना दिया।
दिल्ली से साढ़े छह घंटे की उड़ान के बाद उगते सूर्य की लालिमा के साथ विमान सर शिव सागर रामगुलाम इंटरनेशनल एयरपोर्ट उतरा, तो लगा कि जैसे स्वर्ग है। घुमड़ते बादल, इन्द्रधनुषी मौसम में रिमझिम फुहारों के बीच छोटी-छोटी पहाड़ियों का दृश्य गजब का मंजर बांध रखा था। सवाल कौंध गया, क्या यह भोजपुरी मुल्क है। सुंदरता इतनी की चित्रकार भी शरमा जाये। दिल में खुशियों की लहरें हिलोरें लेने लगीं।
‘साहेब कहां जाये के बा’ अचानक संजीम वहू की आवाज ने तंद्रा भंग कर दी। अपने भारत प्रवास के दौरान संजीम से मेरी मित्रता हुई थी। और उनके बुलावा पर ही वहां गया था। संजीम अखबार लॉ मॉरीशस में सब-एडिटर हैं, उनके पूर्वज बेलवाई(रोहतास) के थे, जो वहां गिरमिटिया मजदूर बन कर गये थे। मॉरीशस भ्रमण के दौरान जो भी लोग मिले, उनके रग-रग में ‘खाँटी भोजपुरिया’ अंदाज दिखा। यहाँ घर-घर में सारे संस्कार व रश्में निभायी जाती हैं, जिसे हम भूल रहे हैं। बच्चे के जन्म उपरांत आज भी यहाँ थाली बजाने व सोहर गाने की परम्परा है। सतैसा व छठियार की रश्में निभायी जाती हैं। नाखून काटने व ‘मुँहलग्गी’ की परम्परा को भी लोग नहीं भूल पाये हैं।
शादी-विवाह की परम्पराएँ भी कमोवेश वही हैं, जो हमारे यहाँ हैं। परम्पराओं की सीमा कभी नहीं तोड़ते। लड़का-लड़की देखने, तिलक चढ़ाने व फिर शादी की वे सारी रश्में आज भी जीवंत हैं। संजीम की माँ सरिता वेबाक कहती हैं, ‘बेटवा आखिर ऊ सब संस्कार के हम सब कईसे भुला जाई। पूर्वज त बस संस्कारें ही इहा ले के आईल रहलेन आ ऊहें संस्कार ही हमनीन के विकास में पथिक बनल…।
फ्रांसीसी और बाद में अंग्रेजों की कॉलोनी रहा मॉरीशस मिश्रित संस्कृति वाला मुल्क है। लेकिन कुल 16 लाख की आबादी में 13 लाख लोग भोजपुरी भाषी हैं। मॉरीशस के उप-प्रधानमंत्री रह चुके हरीश बुडू से मिलकर लगा कि मीलों दूर हम अपने ही आंगन के अपने परिवार से बात कर रहे हैं। बुडू बोले, ‘जेतना बड़ शाहाबाद, ओतने बड़ ई हमनीन के मुल्क बा। भारत से भोजपुरिया क्षेत्र के जे केहू एहिजा आवे ला, लागे ला कि कोई आपन आईल बा। बाकिर हमनीन के ओहिजा गईला पे ओइसन पियार ना मिले। थोरा-बहुत भावे से खुद के तसल्ली करे के परेला। बुडू के सहायक नीलेश की बात ने तो जैसे अंदर तक झकझोर दिया। नीलेश बोले ‘आखिर त हमनीने के गिरमिटिये नू हईं जा…। लगा कि सचमुच हमने मॉरीशस से आये लोगों को भाव देने में कहीं ना कहीं कमी की है। पोर्ट लुई मॉरीशस की राजधानी है। राजधानी का ज्यादातर हिस्सा मूंगों की चट्टानों से घिरा है। यहां ‘वाटर क्रंट’ काफी खूबसूरत जगह है। हिन्दी फिल्मों की अक्सर शूटिंग होती है। अब भोजपुरी फिल्मों की भी तमाम शूटिंग होने लगी हैं। मोर सुआंजी तट शंकु पतों वाले पेड़ों से घिरा है। बेहद शांत नजर आता है यह तट। हिंद महासागर की गर्ममिजाजी तटों की खूबसूरती को चार चाँद लगा देती है। डोडो में ‘भोजपुरी हाउस’ भी है। अकसर यहां भोजपुरी काव्य-पाठ होता रहता है। हाउस की सुंदरता देखते बनती है। हाउस के आगे भोजपुरी शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का खूबसूरत फोटो लगा है। यहाँ एक भोजपुरी कवि विरुस से मुलाकात हो गई। बातों ही बातों में जिस तरह दोस्ताना अंदाज व भोजपुरी के प्रति अथाह प्रेम दिखा, मैं चकित रह गया। आग्रह पर उन्होंने कविता तो सुनाई, पर कविता को आधार बना उन्होंने सम्पूर्ण प्रेम’ व ‘गहरी आस्था’ की मार्मिकता पिरो दी।
सुनावत बानी कविता बस तोहरे खातिरदीवाना भईली त बस तोहरे खातिर..
केहू ना देखी अब ई नजर
नजर तरसी भी त तोहरे खातिर..
हर सांस के साथ करम ईयाद तोहके
अब सांस निकली भी त बसे तोहरे खातिर..
यूनोसों से लौटने के क्रम में ग्रामीण परिवेश से भी रु-ब-रु हुआ। जंगल, नदियाँ, झरनों के साथ खेत खलिहान भी नजर आये। खेतों में गन्ने के पौधे लहलहाते ऐसे नजर आ रहे थे, जिस तरह हमारे यहां धान-गेंहू लहलहाते हैं। गन्ने से गुड़, चीनी के साथ खांडसारी व देसी उर्रा तो लोग ही बना लेते हैं, गन्ने से परफ्यूम व बिजली भी बना देते हैं। किसानों से बातचीत के दौरान लगा कि, ‘धान के कटोरे’ के किसानों की तुलना की जाये तो उनसे भी ये ज्यादा मेहनतकश हैं। 8 से 10 घंटे खेतों में ड्यूटी बजाते हैं।