लोकआस्था, सामाजिक समरसता, साधना, आरधना और सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ नौ अप्रैल मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा. इसको लेकर व्रतियों के घरों में भक्ति का माहौल बन गया है. बेहद खास और अहम पर्व छठ कई मायने में खास होता है. गर्मी और सूर्य की तपिश के बावजूद व्रती दो दिनों तक उपवास रहकर भक्ति में लीन रहते हैं.
पवित्र लोक पर्व चैती छठ को लेकर तैयारी शुरू हो गई है. नवरात्र शुरू होते ही श्रद्धालुओं ने विधि-विधान के साथ नहर व जलाशयों के समीप घाट का निर्माण किया. चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व नौ अप्रैल को नहाय-खाय से शुरू होगा. 10 को व्रती दिन भर निराहार रहने के बाद शाम को खरना का अनुष्ठान पूरा करेंगे. इसके बाद 36 घंटे का निराहार आरंभ हो जायेगा. 11 को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जायेगा. 12 अप्रैल यानि शुक्रवार की सुबह व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देंगे. इसके साथ ही लोकआस्था का महापर्व चैती छठ का समापन हो जायेगा.
व्रत को देखते हुए इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है. व्रत वाले घरों में विशेष शुद्धता बरती जा रही है. स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. छठ घाटों की साफ-सफाई शुरू हो चुकी है. वहीं इसको लेकर पटना के आर ब्लॉक, बेली रोड, बोरिंग रोड, बाजार समिति फलमंडी जैसे प्रमुख बाजार सज गए हैं. सूप, दउरा, मिट्टी के दीये, हाथीदान के साथ मौसमी फल और लौकी की खरीदारी शुरू हो गयी है.
यह इकलौता पर्व है, जिसके केन्द्र में कृषि, मिट्टी और किसान हैं. धरती से उपजी हुई हर फसल और हर फल-सब्जी इसका प्रसाद है. मिट्टी से बने चूल्हे पर और मिट्टी के बर्तन में नहाय-खाय, खरना और पूजा का हर प्रसाद बनाया जाता है. बांस से बने सूप में पूजन सामग्री रखकर अर्घ्य दिया जाता है. बांस का बना सूप, दौरा, टोकरी, मउनी तथा मिट्टी से बना दीप, चौमुखा व पंचमुखी दीया और कंद-मूल व फल जैसे ईख, सेव, केला, संतरा, नींबू, नारियल, अदरक, हल्दी, सूथनी, पानी फल सिंघाड़ा , चना, चावल (अक्षत), ठेकुआ इत्यादि छठ पूजा की सामग्री प्रकृति से जोड़ती है.
छठ महापर्व महिलाओं के अस्तित्व को भी सम्मानित करता है. हमारे देश में ऐसा छठ के अतिरिक्त कोई दूसरा ऐसा पर्व नहीं है, जिसे सधवा(शादीशुदा महिलाओं), विधवा, कुंवारी, गर्भवती आदि सभी स्त्रियां एक साथ कर सकती हों. बाकी सभी त्योहारों में अलग-अलग श्रेणी की महिलाओं के लिए अलग नियम होते हैं लेकिन छठी मैया के दरबार में सभी महिलाएं एक समान हैं.
बता दें कि पंडित मार्कंडेय शारदे के मुताबिक छठ व्रत का अनुष्ठान बच्चों की रक्षा से जुड़ा है. जिस प्रकार से बच्चे के जन्म के बाद उसकी छठी मनायी जाती है. ठीक उसी प्रकार सूर्य की शक्ति के समक्ष बच्चों की रक्षा की जाती है. इस व्रत के वैज्ञानिक महत्व भी है. वर्ष में दो बार छठ व्रत मनाया जाता है. दोनों ही व्रत ऋतुओं के आगमन से जुड़ा है. कार्तिक मास में शरद ऋतु की शुरुआत होती है, तो चैत्र मास में वसंत ऋतु. एक में ठंड़ की शुरुआत होती है, तो दूसरे में गर्मी की. बदलते मौसम में दोनों व्रत किया जाता है. इन दोनों ही ऋतुओं में रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है. इसे शांत करने के लिए सूर्य की आराधना की जाती है, जाे प्रकृति प्रदत पूजा है. पूजा में मौजूद सभी समाग्रियां प्रकृति से जुड़ी होती है. ताकि, रोगों से लड़ने की शक्ति मिल सकें.