कोरोना के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर इस बार लोकआस्था का महापर्व ‘चैती छठ’ श्रद्धा के साथ अपने-अपने घरों में ही मनाया. महापर्व के तीसरे दिन रविवार को छठव्रतियों ने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया. सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही महापर्व का समापन हो जाएगा.
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इस बार अधिकांश लोग इस बार चैती छठ अपने स्वजनों के साथ अपने-अपने घरों में ही करते दिखे. अर्घ्यदान को ले व्रतियों ने अपने घर में ही छठ घाट बनाया था. हालांकि ग्रामीण अंचलों में कुछ जगहों पर पोखर व तालाब में जाकर व्रतियों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया. इस दौरान वे लोग आपस में शारीरिक दूरी बनाएं हुए थे. व्रती व उनके स्वजन अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा अर्चना करने के बाद आंगन एवं छत पर मिट्टी के कोशी को छठी के रूप में पूजा किए.
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सोमवार की सुबह व्रती उदित सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे. इसके साथ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास खत्म हो जायेगा और वे पारण करेंगे. साल में छह महीने के अंतराल पर कार्तिक व चैत मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर होने वाले छठ पर्व का सामाजिक व धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व है. हालांकि कार्तिक मास में होने वाली छठ पूजा की तुलना में चैती छठ की पूजा कम लोग करते हैं.
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बता दें कि छठ महापर्व के अनुष्ठान के दौरान हरे कच्चे बास की डाला, मिट्टी के चूल्हा, प्रकृति प्रदत्त फल, ईख सहित अन्य चीजों के उपयोग का विधान है. इस त्योहार में प्रकृति से प्राप्त होने वाले चीजों का महत्व लोगों को समझने को मिलता है जो आमजनों को प्रकृति से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है.
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इस महापर्व के अनुष्ठान में पवित्रता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है. जिससे आम जीवन में साफ-सफाई एवं स्वच्छता की भावना जागृत होती है. पूजा में कच्ची हल्दी, पान, दूध, सुपारी, सिघारा, नारियल, डाभ आदि से भगवान सूर्य को अर्घ अर्पित किया जाता है. उक्त सभी चीजें स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है. अनुष्ठान के माध्यम से लोगों को दैनिक जीवन में ऐसे स्वास्थ्यवर्द्धक चीजों के उपयोग करने की प्रेरणा मिलती है.
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