लोकआस्था, सामाजिक समरसता, साधना, आरधना और सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ का अनुष्ठान आज नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया. आज सुबह व्रतियों ने गंगा नदी में स्नान किया और गंगाजल भरकर घर ले गईं. गंगाजल से व्रतियों ने नहाय-खाय का प्रसाद कद्दू भात बनाया और भगवान को नमन कर प्रसाद को ग्रहण किया. उसके बाद परिवार के बाकी लोगों ने भी प्रसाद ग्रहण किया.
नहाय-खाय के बाद व्रती का 24 घंटे का निर्जला उपवास है. इसके बाद कल शाम को खरना पूजा होगा, शुक्रवार को व्रती भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य देंगी. फिर शनिवार को उदयीमान भगवान सूर्य को अर्घ्य के साथ महापर्व संपन्न हो जाएगा.
वहीं छठ घाटों की साफ-सफाई अंतिम चरण में है. छठ गीतों से माहौल भक्तिमय हो गया है. छठ व्रत को लेकर बिहार-झारखंड के नदी घाटों पर सुरक्षा व कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर कड़े इंतजाम किए गए हैं. इस बार अधिकतर लोग घर से ही छठ करने वाले है. महापर्व को लेकर आस्था है कि इसमें छठी मइया से मांगी गई मुराद पूरी होती है. ऐसे में लोग परिवार व समाज के लिए मन्नते मांगते रहे हैं. बिहार की अचर्ना, अंशु हों या झारखंड की शिवानी, बड़ी संख्या में श्रद्धालु कोरोना से छुटकारा दिलाने की मन्नत मांगते दिख रहे हैं.
बता दें कि वैज्ञानिक दृष्टि से छठ महापर्व अपने आप में अनूठा है. नहाए-खाए के दिन बनने वाले कद्दू में लगभग 96 फीसदी पानी होता है. इसे ग्रहण करने से कई तरह की बीमारियां खत्म होती हैं. वहीं चने की दाल बाकी दालों में सबसे अधिक शुद्ध है. जबकि खरने के प्रसाद में ईख का कच्चा रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा, शरीर के दाग-धब्बे समाप्त हो जाते हैं.
कोरोना महामारी को देखते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड सरकार ने एडवाइजरी जारी की है. लोगों से अपील की गई है कि वे छठ पर्व मनाते समय शारीरिक दूरी का पालन करें. मास्क जरूर लगाएं. व्रती अपने घर में या घर के पास ही पूजा करें. हालांकि जहां घाट और तालाब हैं, वहां स्थानीय प्रशासन को उचित प्रबंधन करने को कहा गया है. नदी, तालाब के किनारे शौचालय और साफ-सफाई की व्यवस्था की जा रही है.