‘भारत छोड़ो’ आंदोलन से स्वतंत्रता प्राप्ति तक का रोहतास

बम्बई में 5 अगस्त 1942 को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का संकल्प स्वीकृत हुआ और भारत से अंग्रेजों के पैर उखाड़ने के लिये सर्वत्र प्रयास होने लगे रोहतास भी इस लहर से अछूता न था. 10 अगस्त 42 को डिहरी हाई स्कूल के छात्रों ने विद्यालय वहिष्कार किया. 13 अगस्त को डालमियानगर में किसानों, मजदूरों तथा छात्रों के प्रमुख संगठनों ने एक विशाल जन प्रदर्शन का आयोजन किया. स्टेशन में आग लगा दी गई, मालगोदाम लूट लिया गया. दूसरे दिन कांग्रेस कमिटी के तत्कालीन अध्यक्ष राम वहन सिंह ने एक सिपाही का सर फोड़ डाला. 10 अगस्त को ही तिलौथू में छात्र नेता ब्रजबिहारी दूबे के नेतृत्व में छात्रों ने स्कूल में हड़ताल करा दिया. डाकखाना जलाया गया. छात्र ढाई माह तक रोहतास, अकबरपुर, बंजारी तथा कैमूर के पर्वतीय क्षेत्रों में घूम-घूमकर क्रांति की ज्वाला फैलाते रहे. 11 अगस्त 1942 को अकबरपुर में परमानंद मिश्र के नेतृत्व में बकनाउर गाँव के धरमू सिंह, शिवविलास श्रीवास्तव, सरयूप्रसाद अग्रवाल आदि ने थाने पर धावा बोला और कब्जा कर लिया. 12 अगस्त को ये लोग गिरफ्तार हुए.

वहीं 11 अगस्त 1942 को ही सासाराम के नवजवानों का विशाल समूह जनक्रांति में परिवर्तित हो गया. रेलवे स्टेशन जला दिया गया, संचार व्यवस्था भंग कर दी गई और सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा लहरा दिया गया. 12 अगस्त को डॉ० राम सुभग सिंह के नेतृत्व में हजारों छात्रों के आने से क्रांति हुंकार करने लगी. सासाराम हाई स्कूल के फाटक पर सर्वश्री सूर्यमल, तारा सिंह, जगदीश प्रसाद, निरंतर सिंह, रामनाथ रस्तोगी तथा इंद्र दमन पाठक आदि के नेतृत्व में छात्रों ने धरना देकर स्कूल बंद रखा. परंतु अंग्रेजों से सहानुभूति रखने वाले एक सहायक शिक्षक सिद्दिकी साहब इसी सत्याग्रह में व्यवधान पैदा करने की कोशिश करने लगे तथा उन्होंने मुस्लिम छात्रों को ‘वंदे मातरम्’ के प्रतिरोध में ‘अल्लाह हो अकबर’ का नारा लगाने के लिये उत्प्रेरित किया. फलस्वरूप कुछ मुसलमान आंदोलन से विमुख हो गए. 13 अगस्त को दानापुर से फौजियों का दल सासाराम आ धमका. 14 अगस्त को जब विद्यालय के द्वार पर कसाकसी चल रही थी, एसडीओ मि. मार्टिन ने भीड़ पर लाठी चार्ज करा दिया. जो नहीं भागे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

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एसडीओ पुनः स्कूल गेट पर आ धमका और बचरी निवासी जगदीश प्रसाद नामक विद्यार्थी को सीधे गोली मार दी. जगदीश प्रसाद कुछ दिन बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया. गोली की घटना के बाद जीटी रोड एवं शहीद स्मारक के पास गोरी फौजियों तथा जनता में भयंकर मुठभेड़ हो गई. यहाँ फौजियों ने गोली चार्ज कर दिया और तीन दीवाने सासाराम के मँहगू राम, दनवार के जगन्नाथ राम चौरसिया तथा कउपा के जयराम सिंह गोली खाकर शहीद हो गए. इनके अतिरिक्त यहाँ शहीद होने वालों में से थे लक्ष्मण गोंड तथा लक्ष्मण अहीर. उसी समय शिवसागर प्रखंड के नींव ग्राम निवासी जयनारायण सिंह उर्फ जई सिंह के नेतृत्व में सासाराम टाउन हाई स्कूल में आजादी के दीवानों की बैठक हो रही थी, जिसे एसडीओ मि. मार्टिन ने फौज के साथ आकर घेर लिया और उन्हें पटना कैम्प जेल भेज दिया गया.

रोहतास में इस क्रांति की ज्वाला को भड़काने वालों में और भी लोग थे. पिपरियाँ के इनमें बद्री सिंह, डहरक-रामगढ़ में बैकुंठ चौबे, बराढ़ी-चाँद के राजा सिंह, रूपपुर-मोहानिया के कुँवर सिंह, डहरक के गुप्तेश्वर तिवारी, भभुआ के वैद्यनाथ मिस्त्री, बम्हौर के चंद्रशेखर तिवारी, घटाँव के बंशरोपन सिंह, शाहज़ादा मियाँ, त्रिभुवन दुसाध, फकराबाद के जगन्नाथ प्रसाद, भुड़वा-कुदरा के जंग बहादुर सिंह, भैवला के रामध्यान सिंह, घटाँव के रामगुलाम नोनियाँ, बड़ौरा के रूप नारायण सिंह एवं साहेब दयाल सिंह, ओड़सरा के मथुरा सिंह, मुनी सिंह एवं चेखुर हलवाई, मगराँव के श्याम नारायण राम, लहुआरी के कुलदीप सिंह, खखनू सिंह एवं हरेंद्र सिंह आदि ने सशस्त्र आंदोलन छेड़ रखा था.

वहीं कोआथ के बलिराम दूबे, जयनारायण दूबे तथा पंडित सियाराम तिवारी, बिक्रमगंज-काराकाट प्रखंडों के पिस्तौल सिंह, हवलदार त्रिपाठी, दीप नारायण तिवारी, जगनारायण सिंह, जलधारी सिंह, करगहर प्रखंड के रामनगीना चौबे, वंशी पांडेय, राम वपन सिंह, रामजी सिंह, रामवृक्ष राय, बाल रूप सिंह यादव, बालेश्वर सिंह, हीरा सिंह, नरेश मुसहर, राम विलास साहु, मोकर गाँव के मोहिनीकांत श्रीवास्तव तथा शिव वचन लाल, गढ़नोखा के श्याम बिहारी सिंह, सखी चंद्र डोम, शिवपूजन तेली, गिरिजा कहार, हरिहर शर्मा आदि रोहतास के गाँवों में घूम-घूमकर क्रांति की चिंगारी फैलाते रहे. रेललाइन, सड़क, पुलिया आदि को उखाड़ने-तोड़ने संचार व्यवस्था भंग करने, थानों पर कब्जा करने आदि का कार्य करते रहे, जिससे गोरी सरकार के पैर इस धरती से उखड़ सके. नवम्बर 1942 में रोहतास इंडस्ट्रीज, डालमियानगर तथा जनवरी 1943 में सुगर केन उद्योग, बिक्रमगंज के मजदूरों ने भी हड़ताल कर इस क्रांति का समर्थन किया. सन् 1943 में सूर्यमल के जेल से रिहा होकर आने पर सासाराम में एक गुप्त संगठन का निर्माण किया गया, जिसमें सूर्यमल के अतिरिक्त श्रीभगवान प्रसाद, वृजकुमार लाल श्रीवास्तव, रामंचद्र लाल उर्फ बेबुआ लाल, सत्यनारायण प्रसाद केसरी, जगरनाथ प्रसाद लहेरा, यदुनाथ लाल, मनोहर लाल पोद्दार, नन्हकू पंडित तथा ईश्वर दत्त त्रिपाठी आदि मुख्य रूप से सम्मिलित थे. सूर्यमल का निवास स्थान ही प्रांत भर के क्रांतिकारियों का केंद्र बन गया था. जेल से लौटने के बाद सूर्यनाथ चौबे तथा नन्हकू सिंह (जो अंडमान निकोबार से लौटे थे तथा इनसे सूर्यमल की भेंट फुलवारी कैम्प जेल में हुई थी) के नेतृत्व में सासाराम क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्यक्रम जोर-शोर से चलने लगा. इस क्रम में देश के राष्ट्रीय नेताओं का रोहतास में दौरा भी हुआ. हुंकार 4 मार्च 1946 की रिपोर्ट के अनुसार पं जवाहर लाल नेहरु ने बिक्रमगंज, सासाराम तथा डेहरी की समाओं में भाग लिया. अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हो गया और रोहतास क्षेत्र केलोगों ने भी राहत की साँस ली.

संदर्भ:- रोहतास का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, लेखक- प्रसाद जयसवाल शोध संस्थान से जुड़े इतिहासकार डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी.

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