यूं तो मगरमच्छ को देखने पर पसीने छूट जाते हैं. चिडि़याघरों में भी इन्हें देखने वालों को रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ऐसे में यदि कोई मगरमच्छ सामने मिल जाए तो फिर…. प्राय: ऐसा नहीं होता क्योंकि मगरमच्छ भी आबादी से दूर ही रहना पसंद करते हैं. कैमूर के करकटगढ़ में उनका बड़ा कुनबा है. अब सरकार भी उनके संरक्षण-संवर्द्धन की योजना बना चुकी है. करकटगढ़ जलप्रपात के पास मगरमच्छ संरक्षण केंद्र बनाया जा रहा है. वहां मगरमच्छों की देखभाल के साथ उनकी नई पीढियों के पलने-बढ़ने की गुंजाइश होगी.
सर्वेक्षण के मुताबिक कैमूर जिले में अभी मगरमच्छों की संख्या 80 से अधिक बताई जा रही है. उनमें अधिकांश करकटगढ़ में हैं. सुअरा और कर्मनाशा नदी के साथ दुर्गावती जलाशय में भी उनकी मौजूदगी है. ठंड के मौसम में धूप निकलते ही करकटगढ़ में उनकी जलक्रीड़ा शुरू हो जाती है, जो देखते ही बनती है.
संरक्षण केंद्र बन जाने के बाद पर्यटन के लिए भी संभावना बढ़ेगी. दरअसल वन विभाग की ओर से भी मगरमच्छों के संरक्षण की ओर से कवायद तेज कर दी गई है. ठंड में मगरमच्छों का आगमन सतह पर आना शुरू हो गया है. पानी में भी वे मस्ती करते दिखते हैं.
करकटगढ़ जलप्रपात में नदी का पानी करीब 600 फीट नीचे गिरता है. पानी गिरने वाले स्थान से करीब 200 मीटर पूर्व ही मगरमच्छ रहते हैं. इनकी ट्रैकिंग वन विभाग के ओर से वाइल्ड लाइफ की टीम ने की थी. टीम जनवरी माह में आई थी. कई विधि से मगरमच्छों को ट्रैक किया गया. इस दौरान कर्मनाशा व उसकी सहायक नदियों में 80 की संख्या में मगरमच्छ होने का दावा किया.
दरअसल मगरमच्छ एक स्थान पर रहते है. चट्टान से वो जगह घिरा हुआ है. वहां से पानी रिस कर आगे जाता है. कभी-कभार बरसात में जब पानी पत्थर से पार हो जाता है तो उसी में मगरमच्छ भी बह जाते है और जलप्रपात के नीचे चले जाते है. इसके अलावा दुर्गावती जलाशय व सुअरा नदी में भी कभी-कभार मगरमच्छ पाए गए हैं. सूत्रों के मुताबिक उनके कुनबा को बढ़ाने के लिए वन विभाग की ओर से उसी स्थल को विकसित किया जाएगा जहां पर उनकी संख्या अधिक है.
बता दें कि वन एवं पर्यावरण विभाग की ओर से करकटगढ़ जलप्रपात के बगल में इको पार्क, सेल्फी प्वाइंट तथा हैंगिंग झूला का भी निर्माण कर दिया गया है. इसके अलावा लकड़ियों की मदद से कई आकृति बनाई गई है. इस जलप्रपात को देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटती है. करकटगढ़ के जलप्रपात के चारों तरफ घेराबंदी भी कर दी गई है ताकि कोई अनहोनी न हो पाए. हालांकि अभी सड़क का निर्माण नहीं हो जाने से पर्यटकों की संख्या कम रहती है.
करकटगढ़ जलप्रपात के बगल में बने इको पार्क 4 हेक्टेयर में फैला है. पार्क में विशेष किस्म की घास भी लगाई गई है. हजारों पौधे लगाए गए हैं. इसमें 40 लोगों की एक साथ बैठने की व्यवस्था की गई है. बांस की बनी डस्ट बिन भी रखी गई है.
वर्षा जल के संरक्षण का भी यहां व्यवस्था है. इसके लिए इसी 4 हेक्टेयर की भूमि में 7 छोटे छोटे तालाब बनाए गए हैं. बताया गया है कि इन तालाबों की पानी से गर्मी के दिनों में पार्क के पौधों व घास की सिंचाई होगी.