एक युवा पढ़ाई के बाद रोजगार के लिए अमेरिका पहुंचता है, वहां उसे एक युवती से मुहब्बत है फिर उससे निकाह होती है और मरते वह दमतक वहीं का वसेरा बनकर रह जाता है। परन्तु मरने से पहले वह अपनी प्रेमिका यानी पत्नी से अन्तिम इच्छा जाहिर करता है कि मेरी मिट्टी-मंजिल मातृभूमि पर ही होनी चाहिए। पत्नी भी शौहर की इच्छा पूरी करती है, सात समन्दर पार से ताबूत में शव को लेकर 21 दिन बाद पहुंच जाती है अपने शौहर के पैतृक भूमि रोहतास जिला के डेहरी-ऑन-सोन। यह कोई कहानी नहीं, हकीकत है।
देश के महान राष्ट्रवादी व द्वीराष्ट्र के प्रबल विरोधी अब्दुल क्यूम अंसारी के भतीजा मुनु अंसारी डेहरी में पढ़ाई के बाद कनाडा चले गए थे, जहां वे प्रध्यापक थे। वही इन्हें परिन कैरेन नामक युवती से मुहब्बत हो गया और उसी के साथ जीने-मरने की कसमें खायी। मुनु अंसारी ने अपनी कसमें पूरी भी की और पूरी ज़िन्दगी कनाडा में कैरेन के साथ बिताया। लेकिन मातृभूमि के मिट्टी की खुशबू उन्हें बहुत याद आ रही थी। मुनु ने कैरेन से कहा कि मुहब्बत में किया गया वादे तो मैं पूरा किया परन्तु मरने के बाद मेरी मिट्टी मंजिल मातृभूमि पर हीं होना चाहिए। अब यह जिम्मेदारी अब तुम्हारी होगी। कैरेन, मुनु से बहुत प्यार करती थी और वह चौथापन के उम्र में भी सात समन्दर पार से ताबूत में मुनु अंसारी का शव जहाज से लेकर कलकत्ता पहुंची और डेहरी-ऑन-सोन लाने के बाद उनके पुश्तैनी घर के कब्रिस्तान में पिछले शुक्रवार को खाक-ए-सुपुर्द किया गया। इसी को तो कहते हैं मातृभूमि से प्यार।
आपको बता दे मुनु अंसारी का जन्म 1952 में डेहरी-ऑन-सोन के तारबंगला स्थित हाई स्कूल के सामने वाली अपने समय के सबसे खूबसूरत अंसारी बिल्डिंग (साकिया भस्कन) में हुआ था। साकिया भस्कन आज वीरान पड़ा हुआ है। अब डेहरी-ऑन-सोन के न्यू डिलियां में मुनु अंसारी के भाई परकास अंसारी, बाबू अंसारी और बावली अंसारी रहते हैेंं।
– अखिलेश कुमार (स्वतंत्र पत्रकार)