रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से आठ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम स्थित सकास गांव स्थित गढ़ की हुई पुरातात्विक खोदाई में साढ़े चार हजार वर्ष पूर्व के एक और नरकंकाल मिला. इसके पूर्व पिछले माह 18 मार्च को पुरास्थल से पांच नर कंकाल मिले थे. साथ ही इसके अलावा कई और पुरातात्विक अवशेष भी प्राप्त हुए हैं.
रविवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के पुरातात्विक वैज्ञानिक व बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंस लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने यहां पहुंचकर पुरातात्विक अवशेषों की जांच की. उन्होंने नरकंकालों को लगभग साढ़े चार हजार वर्ष पूर्व का बताते हुए इसे पुरातात्विक दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने नरकंकालों की डीएनए जांच कराने की भी बात कही.
बीएचयू के डॉ. विकास कुमार सिंह के निर्देशन व डॉ. रविन्द्र नाथ सिंह के मार्गदर्शन में पुरातात्विक टीम यहां खोदाई का कार्य कर रही है. बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंस लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय ने बताया कि इस पुरास्थल से मिले सभी छह नरकंकालों के नमूने लिए गए हैं. नरकंकाल करीब 4500 वर्ष पूर्व के प्रतीत होते हैं. डीएनए टेस्ट के बाद इतिहास की कई गुत्थियों को सुलझाने में मदद मिलेगी, जिससे यहां मानव सभ्यता के विकास के बारे में और पता चलेगा. सभी नरकंकाल सुरक्षित हैं. पुरास्थल से प्राप्त हुए अन्य पुरावशेष जैसे चूल्हे, फर्श, मृदभांड, मनके, पत्थर के औजार इत्यादि नव पाषाणकालीन होने की संभावना है. खोदाई में यहां से कई चूल्हे भी प्राप्त हुए हैं, जो एक दो एवं तीन मुंह वाले हैं. आज भी आसपास के गांवों में इस प्रकार के चूल्हे प्रयोग में हैं, जो निरंतरता के सूचक है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. रत्नेश कुमार त्रिपाठी व सीएल पांडेय भी यहां दो दिनों से इस पुरास्थल का अध्ययन कर रहे हैं. दोनों का मानना है कि यह स्थल नव पाषाणकालीन है. आगे और उत्खनन के बाद इस पर काफी नवीन तथ्य उजागर होंगे. यहां पूर्व में भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वरिष्ठ पुरातत्वविद प्रो. जेएन पाल, डेक्कन कॉलेज पोस्ट ग्रेजुएट रिसर्च इंस्टीच्यूट पुणो के प्रसिद्ध जंतु पुरावैज्ञानिक प्रो. पीपी जोगलेकर आ चुके हैं. उत्खनन टीम में अरूण कुमार पांडेय, सुदर्शन चक्रधारी, आफताब आलम, धनंजय कुमार, बृजमोहन, किशोर चन्द्र विश्वकर्मा, डॉ विकास कुमार, टुनटुन सिंह, रामजतन समेत अन्य शामिल हैं.