विभाजित बिहार में कैमूर पहाड़ी से मिला पहला महापाषाणिक संस्कृति का अवशेष

रोहतास प्रखंड में खोज के दौरान मिला महापाषाणिक संस्कृति का अवशेष

बिहार की भूमि से भी मेगालिथ मिलने लगे हैं. पहले मान्यता थी कि भारत में इस संस्कृति का उदय और प्रसार दक्षिण भारत में हुआ था. जब उत्तर भारत से महापाषाणिक संस्कृति के अवशेष मिले, तो इसे भारतीय पुरातत्त्व की एक बड़ी उपलब्धि माना गया था. अविभाजित बिहार के झारखंड में विशेषकर हजारीबाग और रांची के आसपास बड़ी संख्या में मेगालिथ थे, लेकिन बिहार के बंटवारे के बाद एक भी मेगालिथ अबतक ज्ञात नहीं था. अब महापाषाणिक संस्कृति के अवशेष रोहतास जिले की कैमूर पहाड़ी से भी खोजे गये हैं.

बता दें कि रोहतास जिले की कैमूर पहाड़ी से महापाषाणिक संस्कृति के अवशेष को शोधकर्ता और इतिहासकार डॉ. श्याम सुंदर तिवारी ने रोहतास प्रखंड में खोज निकाला है. पुरातात्त्विक अन्वेषण के क्रम में वर्ष 2016 में डा. तिवारी को रोहतासगढ़ से चार बृहत्त्पाषाणिक समाधियां प्राप्त हुईं थीं. इनमें दो संगोरा समाधियां तथा दो पाषाण स्तंभ (मेनहीर) थे. उन्होंने 25 नवम्बर को विश्व धरोहर सप्ताह के दौरान पहाड़ी की यात्रा में एक और महापाषाणिक स्थल को खोजा है.

रोहतास प्रखंड में खोज के दौरान मिला महापाषाणिक संस्कृति का अवशेष

कैमूर पहाड़ी में पुरातत्व की शोध करे रहे डा. श्याम सुंदर तिवारी ने बताया कि महापाषाणिक संस्कृति में मृत व्यक्तियों की स्मृति को स्थायी बनाए रखने के उद्देश्य से विशिष्ट प्रकार के स्मारकों का निर्माण किया जाता है. इसके लिए पत्थर का बड़ा स्तंभ गाड़ा जाता है या इसी प्रकार के अन्य स्मारक बनाये जाते हैं. इस संस्कति में आंशिक शवाधान के साथ अंत्येष्टि सामग्री के रूप में कृष्ण-लोहित मृद्भांड, लघु पाषाण उपकरण, मवेशियों की हड्डियां रखी जाती थी. इसके पश्चात् कब्र को, गड्ढा खोदते समय निकली मिट्टी से भर दिया जाता था. समाधि को भर देने के बाद उसके ऊपर और अगल-बगल पत्थर के टुकड़ों का ढेर लगा दिया जाता था या पाषाण स्तंभों को कब्र के संकेत सूचक के रूप में स्थापित किया जाता था. इन्हें हड़गड़ी भी कहा जाता था. उत्तर भारत में इन समाधियों का काल 1500 से 600 ईपू माना गया है.

उन्होंने बताया कि जंगल में एक स्थल से दस महापाषाणिक समाधियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इन सभी पर पाषाण स्तंभ खड़े हैं. ये स्तंभ 50 सेंटीमीटर से लेकर ढाई मीटर तक के हैं. मेगालिथ पर काम कर रहे प्रसिद्ध पुराविद् शुभाशीष दास ने बताया कि डा. तिवारी की यह खोज ऐतिहासिक है. अब बिहार की भूमि भी महापाषणिक संस्कृति के लिए जानी जाएगी. रोहतास की कैमूर पहाड़ी में इन समाधियों का मिलना न केवल बिहार के पुरातत्त्व के संदर्भ में अतिमहत्त्वपूर्ण है बल्कि यह भारतीय पुरातत्त्व के लिए मील का पत्थर साबित होगा.

साभार- हिंदुस्तान

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