रोहतास के नर्सरी में लगती है प्रकृति की पाठशाला, वन अधिकारी होते है शिक्षक

छात्रों को प्रकृति से जोड़ने और प्रकृति को बेहतर रूप से समझने के लिए रोहतास वन प्रमंडल द्वारा एक विशेष कार्यक्रम चलाया जा रहा है. जिस कार्यक्रम का नाम है “प्रकृति की पाठशाला”. यह पाठशाला प्रत्येक गुरूवार को जिले के नर्सरी (पौधाशाला) में लगता है. जिसमें जिले के अलग-अलग विद्यालयों के छात्रों का ग्रुप नजदीकी नर्सरी में पहुंचता है. जहां रोहतास डीएफओ एवं वन अधिकारी शिक्षक के रूप में मौजूद रहते हैं. पाठशाला में बच्चों को पौधाशाला से संबंधित जानकारियां, प्रकृति में कीट-पंक्षी का महत्व, पोखर-तालाब का संरक्षण से लेकर प्रकृति से जुड़ी कई जानकरियां बतायी जाती है. वन अधिकारी एवं छात्रों के बीच बायोडोमेस्टिक क्विज भी आयोजित किया जाता है. छात्र वन अधिकारी से बेझिझक प्रकृति से जुड़ी सवाल भी पूछते है.

इसी कार्यक्रम के तहत जिले के जमुहार स्थित गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के छात्रों ने आज गुरुवार को शिवसागर स्थित नर्सरी का भ्रमण किये. जहां रोहतास डीएफओ प्रद्युम्‍न गौरव खुद शिक्षक के रूप में नजर आएं. डीएफओ ने छात्रों को पौधा रोपने से संबंधित बारीकियां बताई. उन्होंने छात्रों को बताया कि नर्सरी क्या है. पौधे से संबंधित बेसिक जानकारियां भी बताया गया. कैसे प्लाट, बेड व पालीबैग तैयार किये जाते हैं. उन्होंने छात्रों को बताया कि प्रकृति के लिए बरगद, पीपल, पाकड़, गूलर के पौधे आवश्यक हैं.

रोहतास जिले के शिवसागर स्थित प्रकृति की पाठशाला

डीएफओ ने छात्रों को पेड़ों के जीवन चक्र, तालाब और अन्य संबंधित पहलुओं में मौसमी बदलाव के साथ जैव विविधता में कीड़े एवं पक्षियों की भूमिका के बारें बताया. उन्होंने जलवायु परिवर्तन, पृथ्वी पर हमारे आस हो रहे वातावरण में बदलाव, आहार-पोखर-तालाब बचाने से उस पुरे इलाके में फायदे की जानकारियां भी छात्रों को बताई.

शिवसागर स्थित नर्सरी में शिक्षक के रूप में रोहतास डीएफओ प्रद्युमन गौरव

उन्होंने छात्रों को बताया कि कैसे कीट-जीव के खत्म होने से प्रकृति को नुकसान पहुंचता है. इस दौरान उन्होंने छात्रों को बताया कि कैसे मानव गतिविधियों से मॉरीशस की डोडो पंक्षी इस पृथ्वी से विलुप्त हो गयी.

उन्होंने बताया कि पर्यावरण को संतुलित रखने में पेड़-पौधों के साथ ही कीट-पतंग, पशु-पक्षियों की अहम भूमिका होती है. मनुष्य के अत्यधिक हस्तक्षेप के चलते इन सबकी संख्या कम होती जा रही है. इसके लिए हमें सचेत होना होगा. उसे बचाने के लिए चाहे जो भी हो जल संरक्षण, चाहे पेड़-पौधों को लगाना हो, पेड़-पौधों को बचाना हो, पशु-पक्षियों को बचाना हो, उनके संबर्धन के लिए लोगों को जागरूक करना हो हमें करना चाहिए.

शिवसागर स्थित पौधाशाला में छात्र

डीएफओ ने बताया कि नष्ट हो गए पर्यावरण को बचाने के लिए मुख्यमंत्री द्व्रारा 26 अक्तूबर को जल-जीवन हरियाली लांच किया गया. यह कार्यक्रम पूर्णत: पर्यावरण के लिए है. इसके तहत हमारे आसपास मौजूद पर्यावरण की अच्छी चींजे तालाब, आहार-पाइन और कुओं को चिन्हित कर उनकी उड़ाही कराई जा रहा है, वाटर लेबल बढ़ाया जा रहा. वन विभाग द्वारा मेघा नर्सरी लगायी जा रही है जिससे कि आने वाले मौसम में भारी मात्रा में पौधा उपलब्ध हो सकें.

शिवसागर स्थित नर्सरी में प्रकृति की पाठशाला

वहीं नर्सरी इंचार्ज जयदेव तांती, वन विभाग टीम की अभिलाषा कुमारी, दौलती कुमारी, सुबोध कुमार ने छात्रों को अलग-अलग मौसमी पौधों की पहचान करायी. इस दौरान पौधाशाला में छात्रों के बीच बायोडोमेस्टिक क्विज भी किया गया. छात्रों ने डीएफओ से पौधे, पक्षियों, तालाब से सम्बंधित सवाल भी पूछे.

शिवसागर स्थित नर्सरी में शिक्षक के रूप में रोहतास डीएफओ प्रद्युमन गौरव

मौके पर गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के कृषि संस्थान के प्रोफेसर केपी सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत विसेन, ज्ञान प्रकाश विसेन, साकिब मौजूद थे.

शिवसागर स्थित नर्सरी में प्रकृति की पाठशाला

रोहतास डीएफओ प्रद्युम्‍न गौरव ने बताया कि प्रकृति ने हमें वो सब कुछ दिया है जिससे न केवल हम जीवित रहते हैं बल्कि जीवन को आसान और खुशहाल बनाते हैं. तो इस प्रकृति के के संरक्षण के प्रति भी हमारी ही जिम्मेदारी है. आजकल लोग केवल सौंदर्य संबंधी पौधे ही लगाते हैं. जबकि प्रकृति के लिए बरगद, पीपल, पाकड़, गूलर के पौधे आवश्यक हैं. इसके प्रति भी झुकाव होना चाहिए. इस प्रकृति के प्रति स्कूली बच्चों में जिम्मेदारी और अपनेपन की इसी भावना को जागृत करने के लिए रोहतास वन प्रमंडल द्वारा प्रकृति की पाठशाला की शरुआत की गयी है. उन्होंने कहा कि मिशन 2.51 करोड़ के तहत राज्य में अगस्त माह में दो करोड़ 51 लाख पौधे लगाए जाने हैं. जिसे लेकर इस कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों को मानसिक रूप से तैयार किया जा रहा है. ताकि वे पौधे लगाकर और सेल्फी लेकर अपनी जवाबदेही पूरा करना नहीं समझें.


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