इतिहास के पन्नों में समा गया एशिया के सबसे लंबा रेल पुल ‘नेहरु सेतु’

नेहरु सेतु

डेहरी शहर के पूर्वी हिस्से में सोन नद पर बना 118 साल पुराना अपने समय का देश का सबसे लंबा रेल पुल इतिहास के पन्नों में समा गया. रेलवे ने इस पुल को कबाड़ के हाथों बेच दिया. दिल्ली को कोलकाता से जोड़ने वाला ग्रैंड कार्ड लाइन पर डेहरी में इस पुल का निर्माण सन 1897 में प्रारम्भ हुआ था. इसे रेल यातायात के लिए सन 1900 में खोल दिया गया. इस पुल के जर्जर होने के कारण रेलवे द्वारा सोन नद में इसके समानांतर नया पुल का निर्माण कर पुराने पुल पर रेल का परिचालन बंद कर दिया गया था.

अब इस रेल पुल में लगे सामानों को हटाने का कार्य भी अंतिम चरण में है. लोहे के खंभों की कटाई भी तेजी से की जा रही है. जिससे यह रेल पुल हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में समा कर रह जाएगा.

फाइल फोटो: कबाड़ हटाते हुए

गौरतलब हैं कि, आजादी से पूर्व ब्रिटिश काल में 27 फरवरी, 1900 में बने नेहरू सेतु का इतिहास गौरवशाली रहा है. निर्माण के समय उक्त पुल एशिया के सबसे लंबा रेल पुल था. मुगलसराय-गया ग्रांडकॉर्ड रेल लाइन पर डेहरी ऑन-सोन स्टेशन से सोन नगर जंक्शन को जोड़ने के लिए सोन नदी पर बना उक्त रेल पुल वर्तमान में एशिया महादेश में रेलवे का दूसरा सबसे लंबा पुल बन गया था. वर्तमान में इससे लंबा रेल पुल बेंबानाड रेल ब्रिज है जो भारत के केरल में 11 फरवरी, 2011 में बना है.

शाहाबाद गजेटियर के अनुसार 10052 हजार फीट लंबे इस रेल पुल का निर्माण आयरन गिरडर्स व बड़े-बड़े पत्थरों से हुआ था. उस समय स्विट्जरलैंड की टे-ब्रिज की लंबाई 10527 फिट के बाद विश्व के लम्बे रेल पुलों में इसकी गणना होती थी.

फाइल फोटो: निर्माण के वक्त जवाहर लाल नेहरु सेतु

93 पाया वाले इस रेल पुल में एक पिलर से दूसरे पिलर की दूरी लगभग 33 मीटर है. पुल की स्थिति जर्जर होने के कारण इस रेल पुल पर रेल परिचालन की गति एक दशक तक 40 किमी तक सीमित की गई थी.

पुराने पुल के समांतर बने नए पुल से गुजरती रेल

फिलवक्त पांच वर्ष पूर्व नया रेल पुल का निर्माण किया गया है. जिसके बाद इस रेल पुल को समाप्त करने का टेंडर ‘चिनार स्टील सिग्मेंट सेंटर  प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता’ को दिया गया था. जहां कटाई का कार्य भी अब अंतिम चरण में पहुंच गया है.

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