चैती छठ: अस्ताचलगामी सूर्य को आज दिया जायेगा पहला अर्घ्य, जानें क्यों की जाती है डूबते सूर्य की पूजा

चैती छठ को लेकर पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है. हर जगह छठ गीतों से माहौल गुंजायमान है. जी हां, आपको पता होगा कि चैत्र नवरात्र चल रहा है. इस बीच चार दिवसीय छठ की भी तैयारी पूरे जोर-शोर से चल रही है. नहाय-खाय के साथ शुरू हुए इस महापर्व में कल छठव्रतियों ने खरना का प्रसाद खाया. इसके बाद आज शाम को भगवान् भास्कर को अस्ताचलगामी व शुक्रवार को उदीयमान सूर्य को अ‌र्घ्य देने के लिए लोग नदी-तालाब पर उमड़ेंगे.

बता दें कि बुधवार की शाम खरना के बाद से व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास हैं. आज शाम अर्घ्य देते वक्त व्रती नदी व तालाब में बहुत ही लम्बे समय तक पानी में आधा शारीर डूबा कर खड़े रहते हैं और अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं. भारत में कई राज्यों में छठ पूजा मनाया जाता है. जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और नेपाल. छठ व्रत को विशेषकर संतान, निरोग और वैभव प्राप्ति के लिए किया जाता है.

फाइल फोटो

छठ में अस्त और उदित होते सूर्य की पूजा होती है. उदित सूर्य एक नए सवेरे का प्रतीक है. अस्त होता हुआ सूर्य केवल विश्राम का प्रतीक है. इसलिए छठ पूजा के पहले दिन अस्त होते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य देते हैं. केवल छठ ही ऐसा पर्व है जिसमें अस्त होते सूर्य की पूजा होती है. नदी के तट पर डूबते सूर्य को प्रणाम करना यह प्रदर्शित करता है कि कल फिर से सुबह होगी और नया दिन आएगा. गायत्री मंत्र भी सूर्य को ही समर्पित मंत्र है. भगवान कृष्ण ने गीता में सूर्य और गायत्री मंत्र की महिमा बताई है.

इस व्रत के वैज्ञानिक महत्व भी है. वर्ष में दो बार छठ व्रत मनाया जाता है. दोनों ही व्रत ऋतुओं के आगमन से जुड़ा है. कार्तिक मास में शरद ऋतु की शुरुआत होती है, तो चैत्र मास में वसंत ऋतु. एक में ठंड़ की शुरुआत होती है, तो दूसरे में गर्मी की. बदलते मौसम में दोनों व्रत किया जाता है. इन दोनों ही ऋतुओं में रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है. इसे शांत करने के लिए सूर्य की आराधना की जाती है, जाे प्रकृति प्रदत पूजा है. पूजा में मौजूद सभी समाग्रियां प्रकृति से जुड़ी होती है. ताकि, रोगों से लड़ने की शक्ति मिल सकें.


LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here