रोहतास जिला के इस सरकारी स्कूल में बनती है बायोमेट्रिक हाजिरी, है बहुत सारी सुविधाएं

रोहतास जिले के तिलौथु प्रखंड का चर्चित गांव हुरका कभी आपसी विवादों को लेकर सुर्ख़ियों में हुआ करता था. बदली परिस्थितियों में मुख्य धारा में आकर सहकारी मिजाज बना उन्नत कृषि से विकास का नया आयाम शुरू किया. अब वहां बच्चों की शिक्षा पर जोर है. गांव में अवस्थित राजकीय मध्य विद्यालय में वो सारी सुविधाएं मिलेंगी जिसे एक विद्यालय को उत्कृष्टता की कसौटी पर परखा जा सकता हैं. साथ ही औरों के लिए एक नजीर माना जा सकता है. सरकारी सिस्टम में होते हुए भी इस विद्यालय के संचालन का जिम्मा खुद ग्रामीणों से संभाल रखी है.

विद्यालय में प्रवेश करते वक्त कही से सरकारी विद्यालय जैसा महसूस नहीं होगा. स्कूल का कार्यालय भी ऐसा मानो किसी बड़े अधिकारी का कार्यालय हो. उसमे एक साथ 50 अभिभावकों के बैठने की व्यवस्था है. टंगे बोर्ड पर 1902 ईस्वी से 2017 तक 115 वर्षों का विद्यालय का इतिहास झलक जाएगा. क्लास रूम में पोडियम की व्यवस्था जो शायद कॉलेज में ही देखने को मिलती है, दीवाल घड़ी , दो-दो पंखे, एलईडी बल्ब, वायरिंग से लैस पूरा परिसर एक बेहतर व्यवस्था का एहसास दिलाते हैं. बोरा, दरी इस विद्यालय के लिए गुजरे जमाने की बात है.

जूनियर बच्चों के वर्ग में ग्रीन कारपेट की व्यवस्था है. पढ़ाई की गुणवत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक 3 महीने पर प्रबंधन अपने स्तर से सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन कर सफल प्रतिभागियों को पुरस्कृत करता है. विद्यालय में अनुशासन का स्तर ऐसा कि 400 छात्रों के मौजूदगी के बावजूद परिसर में पिन ड्राप साइलेंस. प्रत्येक वर्ग के लिए अलग-अलग आउट पास की व्यवस्था है. बगैर आउट पास के निकलने पर उन्हें दंडित किया जाता है. प्रत्येक वर्ग कक्ष के सामने ही छात्रों के पीने के लिए आरओ के  पानी का नल बेसिन के साथ उपलब्ध है.

शौचालय भी चकाचक, मानो किसी होटल का हो. लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग 5 शौचालय और 14 पेशबखाने जो सफेद टाइल्स से चकाचक. छात्रों को बेहतर शिक्षा मिले इसके लिए चार सामुदायिक शिक्षक भी अपनी सेवाएं देते हैं. विद्यालय का सारा कार्य कम्प्यूटर सिस्टम से होता है. छात्रों की उपस्थिति के लिए विद्यालय में फिंगरप्रिंट मशीन (बायोमेट्रिक) की व्यवस्था है.

विद्यालय शिक्षा समिति की सचिव पुष्पा कुमारी ने बताया कि मात्र 6 सरकारी शिक्षक ही मौजूद हैं. वही हमने गांव के चार शिक्षित युवक, युवतियों को इस कार्य के लिए रखा है. यह शायद राज्य का पहला प्राथमिक विद्यालय होगा जहां वर्ग आदि की सफाई के लिए सफाई कर्मी की व्यवस्था है. इस विद्यालय में छात्र झाड़ू नही लगाते. सफाईकर्मी को विद्यालय प्रबंधन अपनी तरफ से मानदेय देते है. प्रधानाध्यापक डोमन सिंह ने बताया कि छात्रों को परिसर स्वच्छ रखने की ट्रेनिंग दी गयी है. हर दिन के अलग अलग दो छात्र व दो छात्रा दिवस प्रभारी तय हैं जो उस दिन की सारी व्यवस्था देखते हैं. सीनियर लड़कियों के लिए पुस्तकालय युक्त अलग कॉमन रूम की उपलब्धता है. सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए एक बड़ा सा वाटर प्रूफ मंच भी परिसर में मौजूद है. मध्यान्ह भोजन दूसरे विद्यालयों के लिए महज खानापूर्ति होता हो मगर यहां के बच्चों के लिए आकर्षण है. खाने की क्वालिटी देखने के बाद घर का भोजन भी फीका लगेगा. चाट बिछाकर पंक्तिबद्ध छात्रों को खाना खाते किसी सरकारी विद्यालय में पहली बार दिखा. ग्रामीणों ने इसका श्रेय शिक्षकों व कमिटी को दिया. ग्रामीण अपने स्तर से कई तरह के नायाब प्रयोग करते हैं. सारा कार्य ग्रामीणों से चंदा ले कर कराया जाता है. विद्यालय में कई तरह की गतिविधियां भी शिक्षक करवाते रहते हैं.

धनंजय सिंह कहते हैं कि गाँव का व्यक्ति बिना पैसे के दिनभर विद्यालय के प्रति समर्पित है इससे ज्यादा हमें और क्या चाहिए. विद्यालय की बेहतर व्यवस्था को देखते हुए गत दिनों भारतीय जीवन बीमा निगम ने इस विद्यालय को पुरस्कार के तौर पर पच्चीस हजार रुपये का कंप्यूटर सिस्टम दिया था. शशि रंजन सिंह कहते हैं, कौन कहता है कि सरकारी विद्यालय नहीं सुधर सकते. थोड़ा सा प्रयास तो हम सब करें, सब कुछ सरकार के भरोसे नही छोड़ा जा सकता.

रिपोर्ट- राजेश कुमार 

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