उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की ओर से सासाराम के कोठाटोली मोहल्ला निवासी डॉ. जगन्नाथ पाठक को विश्व भारती सम्मान दिया गया. मरणोपरांत मिले इस पुरस्कार को उनकी पुत्री हेमा सरस्वती ने लखनऊ में ग्रहण किया. इस प्रतिष्ठित सम्मान की सूचना मिलने के बाद जिलेवासियों व उनके परिजन में खुशी का माहौल है. गंगानाथ झा केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ इलाहाबाद के पूर्व प्राचार्य रहे डॉ. जगन्नाथ पाठक का जन्म दो फरवरी 1934 को कोठाटोली मुहल्ला में स्व. विश्वनाथ पाठक के घर हुआ था. शेरगंज स्थित मध्यमा की परीक्षा राज्य में सर्वाधिक अंक से प्राप्त कर वे उच्च शिक्षा के लिए बीएचयू वाराणसी गए थे. उनके छोटे भाई रामजी पाठक कहते हैं कि उन्होंने संस्कृत के हर विधा में लेखन का कार्य किया. संस्कृत की दर्जनों पुस्तकों की रचना की. साथ ही कई किताबों का संपादन और अनुवाद भी किए थे. इसमें मुख्य रूप से ‘कापिशायनी ‘मृद्विका ‘पिपासा ‘विकीर्णपत्रलेखम् ‘बाणभट्ट का रचना संसार, ‘आधुनिक संस्कृत साहित्य का इतिहास शामिल है. इसके अलावा उन्होंने ‘कामायनी व आंसू का संस्कृत में पद्यानुवाद, ‘मिलन्दिप्रश्न का पाली भाषा से संस्कृत में अनुवाद किए थे. संपादित संस्कृत ग्रंथों में ‘जानराजचम्पू, ‘काव्यप्रकाश, ‘जातकमाला, ‘जहांगीरविरुदावली, ‘शाहजहांविरुदावली और ‘वाणीविलासितम शामिल हैं.
उनके परिजन रामरक्षा पाठक बताते हैं कि उन्हें विश्व भारती सम्मान मिलने से पहले भी कई सम्मान मिल चुके हैं. इसमें उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी पुरस्कार, केके बिड़ला फाउंडेशन का वाचस्पति सम्मान, साहित्य अकादमी सम्मान, राजस्थान संस्कृत अकादमी का अखिल भारतीय काव्य पुरस्कार, कालिदास पुरस्कार समेत कई अन्य शामिल हैं.
उनके परिजन मंगलानंद पाठक कहते हैं कि वे सात भाषाओं के ज्ञाता थे. उन्होंने साहित्य शास्त्राचार्य और हिन्दी, संस्कृत से एमए किया. बीएचयू से ही उन्होंने संस्कृत विषय में ‘धनपालकृत तिलकमंजरी का आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर पीएचडी किया. उन्हें हिन्दी, संस्कृत के अलावा उर्दू, अंग्रेजी, बांग्ला, मैथिली और पर्सियन भाषाओं का वृहद ज्ञान था.