रोहतास इंडस्ट्रीज की आखिरी निशानी रेल इंजन भी अब हटाया जाएगा, पहले से ही सूबे के कई स्टेशनों की शोभा बढ़ा रहा है रोहतास इंडस्ट्रीज का लोकोमोटिव

बंद पड़े और समापन में जा चुके रोहतास उद्योग समूह के कैंपस में पड़ी हुई वर्षों पुरानी रेल इंजन को यहां से हटाया जायेगा. रेलवे ने इसके लिए टेंडर कर दिया है. इसके पहले भी कई रेल इंजनों को यहां से हटाया जा चुका है. यह रोहतास उद्योग समूह में आखिरी निशानी के तौर पर पड़ी हुई थी. स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि इस रेल इंजन को डालमियानगर में स्थापित किया जायेगा. क्योंकि यहां रेलवे द्वारा खरीदी गई भूमि पर रेल कारखाना भी स्थापित होना है.

रेलवे द्वारा इंजन को हटाए जाने के निर्णय के बाद स्थानीय लोगों में मायूसी छा गई है. मिली सूचना के मुताबिक रेलवे ने अपने खरीदे गए रेल केंपस से रेल इंजन को हटाने के लिए निविदा जमा करने की तिथि 31 मई 2019 निर्धारित की है. यह निविदा 13 जून को खुलेगी. सभी प्रक्रियाएं ई टेंडरिंग पर आधारित है. इस कार्य के लिए 9 लाख 80 हजार रुपए निर्धारित की गई है. ठेकेदार को अग्रिम धनराशि 19 हजार 600 रुपए जमा करना होगा.

बंद पड़े और समापन में जा चुके रोहतास उद्योग समूह के कैंपस में पड़ी हुई वर्षों पुरानी रेल इंजन

बता दें कि जमशेदपुर के बाद एशिया का सबसे बड़े रोहतास उद्योग समूह की स्थापना 1932 में देश के जाने माने उद्योगपति राम कृष्ण डालमियानगर में किया था. 9 जुलाई 1984 को हमेशा के लिए कंपनी के मालिक द्वारा बंद कर दिया गया था. मजदूरों के पोस्टकार्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और इस उद्योग समूह को समापन में डालते हुए कर्मियो व अन्य के बकाए के भुगतान के आदेश निर्गत किए. रेलवे ने 23 जून 2017 को यहां रेल बैगन मरम्मत कारखाना, रेल बैगन निर्माण व कैपलर कारखाना स्थापित करने का निर्णय लिया. उसकी प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई है. यहां बन्द पड़े रोहतास उद्योगके कबाड़ बेचने समेत यहां नए रेल उद्योग लगाने की जिम्मेवारी रेलवे ने अपने अनुसंगी इकाई को दे रखा है. कबाड़ की हटाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है. इसी उद्योग समूह परिसर में पड़ी जर्मनी की कंपनी जंगेलथाल से 1957 में कोयला पर चलने वाली कई रेल इंजनों की खरीद यहां पड़ी थी. रेलवे इंजन की उम्र 1991 में समाप्त होने से पहले ही उद्योग समूह मृत हो गया था.

मालूम हो कि कभी डेहरी रोहतास लाइट रेलवे की मातृ कंपनी रोहतास इंडस्ट्रीज लिमिटेड को अपनी सेवाएं देने वाला लोकोमोटिव अब पूर्व मध्य रेलवे मुख्यालय हाजीपुर के मुख्य भवन रेल निकेतन के सामने बने पार्क सहित, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर रेलवे स्टेशन के बाहर शान से विराजमान है. वहीं राज्य के बाहर हैदराबाद रेलवे म्यूजियम व गुड़गांव में भी यहां के लोकोमोटिव विराजमान है. ये लोकोमोटिव आते-जाते लोगों को स्टीम इंजन (भाप से चलने वाले) दौर की याद दिलाता है. जो लोग सन 2000 के बाद पैदा हुए हैं उन्होंने भारतीय रेलवे में स्टीम इंजन नहीं देखा होगा. क्योंकि आजकल ट्रैक पर डीजल या बिजली से संचालित इंजन ही दौड़ते है. वे इसे देखकर स्टीम इंजन के दौर को जान सकते हैं. कभी सिटी बजाता धुआं उड़ाया ये लोकोमोटिव अब शांत खड़ा है पर मौन रहकर आपको इतिहास में ले जाता है.

फ़ाइल तस्वीर

रोहतास इंडस्ट्रीज ने संभवतः अपने अच्छे दिनों में इन लोकोमोटिव को अपनी जरूरतों के लिए खरीदा था. हालांकि कंपनी ने ज्यादातर लोकोमोटिव सेकेंड हैंड खरीदे थे लेकिन जंग के लोकोमोटिव को नया खरीदा प्रतीत होता है. कहते हैं लोहा कभी पुराना नहीं होता, अगर आप उसकी देखभाल करते रहें. इसलिए 60 साल पुराने लोकोमोटिव को रोहतास इंडस्ट्रीज ने अपने औद्योगिक इस्तेमाल के लिए खरीद लिया था. भले रोहतास इंडस्ट्रीज का कारोबार डालमियानगर में बंद हो गया और डेहरी-रोहतास रेलवे भी बंद हो गया, पर ये लोकोमोटिव चालू हालत में थें. पर कई दशक तक शेड में पड़े-पड़े ये कबाड़ में तब्दील होने लगे थे.

इधर लोगो ने रेल मंत्रालय से मांग की है की रेल इंजन को डेहरी स्टेशन पर स्थापित किया जाए ताकि रोहतास उद्योग समूह के देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान को संजोए रखा जा सके. साथ ही यहां रेल कारखाना होने की यादगार भी यह रेल इंजन बनी रहेगी.

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