सिवान जिले के रघुनाथपुर प्रखंड अवस्थित पंजवार गांव में अभी का माहौल देखते ही बन रहा है. हर ओर उत्साह है, उमंग है और लोग अपने गांव में देश-दुनिया के कोने-कोने से आनेवाले भोजपुरीभाषियों के स्वागत के लिए तैयारी में लगे हैं. प्रतिवर्ष की तरह इस बार भी देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर आखर की ओर से भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन का आयोजन तीन दिसंबर को पंजवार में हो रहा है. आखर की ओर से यह नौवां भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन होगा. इस साल आखर की यह यात्रा दशक वर्ष में प्रवेश करेगी. साल दर साल इस आयोजन का रूप-स्वरूप और दायरा विस्तृत होता जा रहा है. हर साल की तुलना में इस साल आयोजन में और भी अधिक संख्या में भोजपुरी साहित्य, संस्कृति के प्रेमियों के पहुचने की संभावना है. कुछ सालों से यह आयोजन मेले सा रूप भी लेते जा रहा है.
आखर के बारे में:
आखर देश-दुनिया के कोने-कोने में फैले भाषा, साहित्य, संस्कृतिप्रेमी भोजपुरीभाषियों का स्वैच्छिक समूह है, जिसकी शुरुआत सोशल मीडिया पर एक दूसरे से जुड़कर भोजपुरीभाषी युवाओं ने की थी. अलग-अलग गांव, इलाके, राज्य के रहनेवाले इन भोजपुरीभाषियों ने आपस में अपनी भाषा, संस्कृति के सरोकार को लेकर संवाद की शुरुआत की और फिर धीरे-धीरे इसका रूप-स्वरूप बदलता गया और आखर भोजपुरीभााषियों का साहित्यिक-सांस्कृतिक मंच बन गया. आखर की ओर से प्रिंट और ई पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू हुआ और कालक्रम में यह अपनी भाषा से मोह-नेह-छोह रखनेवाले, अपनी भाषा की गरिमा का खयाल रखनेवाले, गौरव से अभिभूत होनेवाले, मर्यादा को बचाने का संकल्प लेनेवाले और उस दिशा में कुछ प्रयास करनेवाले भोजपुरीभाषियों का मंच बन गया, जिसकी ओर से हर साल पंजवार में डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन का आयोजन तीन दिसंबर को होता है.
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क्या होगा आयोजन में:
इस बार आयोजन की शुरुआत गौरवयात्रा से होगी, जिसमें पंजवार व आसपास के इलाके के छात्र-छात्राएं भाग लेंगी. हजारों की संख्या में शामिल होकर छ़ात्र-छात्राओं द्वारा अपनी भाषा के गौरव का उदघोष होगा और साथ ही अपनी भाषा की मान मर्यादा को बचाने की अपील भी. स्वाभिमान सम्मेलन की शुरुआत हर साल इसी यात्रा से होती है, जिसमें हर साल छात्र-छात्राओं की संख्या बढ़ती जा रही है. गौरव यात्रा के बाद प्रभाप्रकाश डिग्री कॉलेज, पंजवार के पास बने विशाल सभागार में अलग-अलग तरीके के आयोजनों की शुरुआत होगी. यात्रा में शामिल बच्चे सबसे पहले अपनी प्रस्तुति देंगे और उसके बाद विधिवित दीप प्रज्जवलन के साथ सम्मेलन सह साहित्यिक-सांस्कृतिक सभा का शुभारंभ होगा.
उदघाटन सत्र में इस बार लिविंग लीजेंड के तौर पर अपने समय के भोजपुरी के मशहूर व बेहद लोकप्रिय कलाकार भरत सिंह भारती उपस्थित रहेंगे और उनके द्वारा आखर के सालाना वार्षिक कैलेंडर का लोकार्पण होगा. कैलेंडर लोकार्पण समारोह के बाद सेमिनार व टॉक शो का आयोजन होगा, जिसमें प्रो. वीरेंद्र नारायण यादव, डॉ. जौहर शफियाबादी, डॉ. अर्जुन तिवारी, हृषिकेश सुलभ, ध्रुव गुप्त, डॉ. मुन्ना पांडेय, प्रो. गुरूचरण सिंह, जैसे साहित्यकार भाग लेंगे. युवा साहित्यकारों में रोहित सिंह, गरिमा रानी, आशुतोष पांडेय आदि की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. इस सत्र के दूसरे चरण में कवि सम्मेलन का आयोजन होगा. ध्रुव गुप्त,डॉ. सुभाषचंद्र यादव व तंग इनायतपुरी जैसे ख्यातिप्राप्त कवियों के साथ संजय मिश्र, सुनील तिवारी जैसे उभरते हुए कवि भी मंच से कविता पाठ करेंगे.
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साहित्यिक सत्र के बाद सिवान जिले के अलग-अलग संगीत महाविद्यालय से आये बच्चों की प्रस्तुति होगी. साथ ही पंजवार के बिस्मिल्लाह खान संगीत महाविद्यालय के कलाकारों की खास प्रस्तुति होगी. पिछले साल इसी कॉलेज के छात्राओं ने महेंदर मिसिर के जीवन पर आधारित पांडेय कपिल रचित उपन्यास फुलसुंघी पर नाट्य प्रस्तुति की थी, जिसकी चर्चा चहुंओर हुई थी और उसे हमेशा याद किया जाता है. इसी क्रम में आखर की ओर से कई नये कलाकारों को अपनी मातृभाषा भोजपुरी में गायन, अभिनय, विशेष प्रस्तुति आदि का अवसर दिया जाएगा. साथ ही लिविंग लिजेंड भरत सिंह भारती नयी पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिए खास गायन की प्रस्तुति देंगे.
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शाम छह बजे से विशेष सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत होगी. इस सत्र में मशहूर बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी खास मेहमान के रूप में उपस्थित रहेंगे. इस सत्र में मशहूर रंगकर्मी सह रंग निर्देशक संजय उपाध्याय, मशहूर लोकगायिका विजया भारती की खास उपस्थिति रहेगी व इनकी विशेष प्रस्तुति होगी. इन वरिष्ठ कलाकारों द्वारा संध्या सत्र का शुभारंभ होगा. और फिर एक से बढ़कर एक कलाकारों की प्रस्तुति होगी. नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा से पासआउट और मुंबई में रह रहे शानदार कलाकार राकेश कुमार खास लौंडा नाच की प्रस्तुति देंगे. मशहूर नृत्य गुरु विपुल नायक अपनी टीम के साथ भोजपुरी गीतों के साथ शास्त्रीयता का मिलान कराते हुए विशिष्ट गीतों पर नृत्य की प्रस्तुति करेंगे. अपनी गायकी से लगातार विशेष छाप छोड़नेवाली और हाल ही में नीदरलैंड में आयोजित अन्तराष्ट्रीय फोक फेस्टिवल में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सबको मुग्ध करनेवाली गायिका सुश्री चंदन तिवारी, मशहूर युवा गायक शैलेंद्र मिश्र जैसे कलाकार विशिष्ट प्रस्तुति देंगे.
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यह साल मनोरंजन प्रसाद सिन्हा रचित कालजयी गीत ‘फिरंगिया’ के शताब्दी वर्ष का है तो संजय उपाध्याय द्वारा फिरंगिया का गायन होगा. यह साल भोजपूरी के मशहूर गीतकार मोती बीए के जन्मशताब्दी वर्ष का भी है. चन्दन तिवारी द्वारा उनके गीतों के गायन के जरिये उनका जन्मशताब्दी वर्ष मनाया जाएगा. साथ ही गोरखपुर की युवा गायिका अंकिता पंडित व पंजवार गांव की ही गायिका निरूपमा सिंह की खास प्रस्तुति होगी. पंजवार गांव के ही रहनेवाले बांसुरी वादक मुरारीजी व कस्तूरबा इंटर कॉलेज में संगीत के शिक्षक संजय कुमार व संगीत गुरु विनय कुमार सिंह की भी खास प्रस्तुति इसी सत्र में होगी. सिवान जिले में संगीत की धारा को निरंतर गति देनेवाले गुरूद्वय अवधेश पांडेय व रमैया पांडेय की युगलबंदी भी देखने को मिलेगी. इन कलाकारों के साथ ही शैलेंद्र शर्मा व्यास, जेआर जायसवाल, श्रद्धा सिंह सिसोदिया जैसे कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे. इन सारे आयोजनों के लिए पंजवार में विशेष प्रकार की मंच सज्जा की जा रही है. आखर की आरा टीम ने भोजपुरिया चित्रकारी का प्रयोग कर मंच के बैकग्राउंड को विशिष्ट रूप में तैयार किया है. इस बार के सम्मेलन का खास आकर्षण भोजपुरी लोकचित्र कला की प्रदर्शनी भी है. समारोह का समापन इस साल दिवंगत हुए भोजपुरी के चार लोगों के ऊपर आधारित श्रद्धांजलि गीत से होगा. लोकेगायिका चन्दन तिवारी द्वारा तिश्ता शांडिल्य, मनीषा राय, संजीव मिश्र व मोतीलाल मंजुल को श्रद्धांजलि दी जाएगी.
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आखर के सालाना कैलेंडर के बारे में: आखर की ओर से तीन साल पहले सालाना भोजपुरिया कैलेंडर प्रकाशन की शुरुआत हुई है. इस कैलेंडर को वाल व टेबल कैलेंडर के रूप में छापा जाता है. इस कैलेंडर में 12 साहित्यिक, सांस्कृतिक व सरोकारी नायकों को शामिल किया जाता है, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व, कृतित्व, नेतृत्व क्षमता से भोजपुरी व भोजपुरियाभाषी के उत्थान में अहम भूमिका निभायी है. इन 12 नायक-नायिकाओं में 11 दिवंगत नायक होते हैं जबकि हर साल एक लिविंग लिजेंड को शामिल किया जाता है. पहले साल के कैलेंडर में लिविंग लिजेंड शारदा सिन्हा थी तो दूसरे साल के कैलेंडर के लिविंग लिजेंड भरत शर्मा व्यास थे. इस साल लिविंग लिजेंड के तौर पर भरत सिंह भारती को शमिल किया गया है.
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इस बार कैलेंडर में जो शामिल नाम है:
1. उदय नारायण तिवारी:
1903 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के पिपरपाँती गाँव में उदय नारायण तिवारी जी के जनम भइल रहे. प्रयाग (इलाहाबाद), आगरा आ कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढाई भइल. इँहा के अध्ययन आ कैरियर के मुख्य क्षेत्र भाषा-विज्ञान रहे. इँहा के शुरुवात में सर ग्रियर्सन के बिहारी भाषा वाला सिद्धान्त के विरोध कइनी बाकिर जब खुद 23-24 साल भोजपुरी भाषा के शोध पऽ व्यतीत कइनी त फेरु सर ग्रियर्सन के समर्थन करत दू गो किताब लिखनी जवन शोध के रुप में आइल रहे. अंग्रेजी में “The origin and development of Bhojpuri” आ हिन्दी में “भोजपुरी भाषा और साहित्य” नाम के दुनों किताब भारत में भाषाई अध्ययन खातिर बहुत उम्दा आ कारगर मानल जाला. एह दुनों किताब के शोध के देस-बिदेस में अनेकन जगह पढावल जाला. उदय नारायण जी देस के कई गो अलग-अलग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर आ कतने विश्वविद्यालय में भाषा-विज्ञान के अध्यक्ष रहनी. अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के पहिला अधिवेशन के अध्यक्ष इँहे के रहीं. जुलाई 1984 में इहाँ के निधन हो गइल.
2. दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह ‘नाथ’:
शाहाबाद (वर्तमान में भोजपुर) के दिलीपपुर के निवासी दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह जी के जन्म 1896 में भइल रहे. घर-परिवार से साहित्य पुश्तैनी मिलल रहे. दुर्गाशंकर प्रसाद जी के बाबा श्री नर्मदेश्वर प्रसाद सिंह ‘ईश’, हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि आ विद्वान लेखक रहनी. 1921 में मैट्रिक के परिक्षा के पास कइला के बाद 1922 में दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह जी हिन्दी आ भोजपुरी साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश कइनी. भोजपुरी लोक साहित्य प आधारित बड़हन आ बरिआर शोध इँहा के कइले बानी. ‘भोजपुरी लोकगीत में करुण रस’, ‘भोजपुरी लोकगीत में शान्त रस’, ‘भोजपुरी लोकगीत में श्रृंगार और वीर रस’, ‘भोजपुरी निबंध संग्रह’, ‘कुंवर सिंह नाटक’, ‘गुनावन’ जइसन किताबन के रचना कइनी. दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह जी के सबसे सुप्रसिद्ध किताब ह ‘भोजपुरी के कवि और काव्य’ जवन भोजपुरी भाषा आ साहित्य खातिर अनमोल किताब मानल जाला. जुलाई 1970 में इँहा के निधन हो गइल.
3. रसूल मियाँ (रसूल अंसारी):
भोजपुरी के चर्चित गीतकार, गायक, नाटककार आ नर्तक रसूल मियाँ के जनम बिहार के गोपालगंज जिला के मीरगंज के जिगना मजार टोला गाँव में 1872 में भइल रहे. रसूल मियाँ नाट्य मंचन आ अपना रचना के वजह से बहुत कम समय में भोजपुरी क्षेत्र आ पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध हो गइल रहले. इनकर नाटकन में भक्ति, सामाजिक व्यवस्था-दुर्व्यव्स्था के बात त रहबे कइल. संगे-संगे अंग्रेजन के सरकार के खिलाफ क्रांति के बिगुलो रहे. रसूल मियाँ के तब के सत्ता विरोधी रचना आ गीतन खातिर जेलो भइल रहे. मात्र कक्षा 5 तक पढ़ल रसूल मियाँ के बाबूजी के नाव फतिंगा अंसारी रहे आ उँहा के गावे-बजावे के काम करत रहनी. चाचा लोग सारंगी वादक रहे. परम्परागत नाटकन से इतर रसूल आपन खुद के नाट्य शैली तइयार कइले. कलकत्ता में मार्कुस लाइन में रसूल मियाँ के डेरा लागत रहे. ‘गंगा नहान’, ‘वफादार’, ‘हैवान का बच्चा उर्फ सेठ-सेठानी’, ‘आजादी’, ‘सती बसंती-सूरदास’, ‘गरीब की दुनिया’, ‘साढ़े बावन लाख’, ‘चंदा कुदरत’, ‘बुढ़वा-बुढ़िया’, ‘शान्ती’, ‘भाई- विरोध’, ‘धोबिया-धोबिन’ जइसन नाटकन के रचना रसूल मियाँ कइले रहलन. सन 1952 में रसूल मियाँ के निधन हो गइल.
4. मनोरंजन प्रसाद सिंह:
मनोरंजन प्रसाद सिंह जी के जन्म 10 अक्टूबर, 1900 में सुर्यपुरा शाहाबाद में भइल रहे. बाद में पूरा परिवार डूमरांव (शाहाबाद) में आ के बस गइल. इँहा के बाबूजी, सदर-आला (सब-जज) रहीं. मनोरंजन जी उच्च शिक्षा के बाद, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस में अंग्रेजी के प्रोफेसर बननी. कुछ समय के बाद मनोरंजन जी, छपरा स्थित राजेंद्र कालेज के प्रिंसपल बन गइनी. अंग्रेजी के अध्यापक आ अंग्रेजी में साहित्य सृजन करत रहनी. बाकिर अंग्रेजी के संगे-संगे हिन्दी आ भोजपुरियो में मनोरंजन जी के कलम लगातार चलत रहे. भोजपुरी में इँहा के लिखल ‘फिरंगिया’ ना खाली भारते में बलुक संवसे विश्व में जहाँ-जहाँ भोजपुरिया लोग रहे ओजुगा ले चहुंपल. “मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा” शीर्षक से लिखल इँहा के एगो रचना खूब ख्याति पवलस. नवम्बर 1971 में मनोरंजन बाबू के निधन हो गइल.
5. पद्मश्री रामेश्वर सिंह ‘काश्यप’:
16 अगस्त, 1929 में सासाराम (बिहार) के नजदीक सेमरा गाँव में भइल रहे. इँहा के मैट्रिक 1944 में मुंगेर जिला स्कुल से पास कइनी. पटना विश्वविद्यालय से 1948 में बीए आ 1950 में एमए पास कइनी. रामेश्वर सिंह ‘काश्यप’ जी सन 1942 से ही साहित्य में रुची देखावे लागल रहनी. इँहा के लेख, गीत, कविता हिन्दी आ भोजपुरी में अलग-अलग पत्र पत्रिका में प्रकासित होखे लागल रहे. बाकिर इँहा के प्रसिद्धि मिलल इँहे के लिखल नाटक ‘लोहा सिंह’ से. अइसे त इँहा के लिखल अउरी नाटकन के आकाशवाणी से प्रस्तुति भइल बा बाकिर ‘लोहा सिंह’ आजो लोगन के जबान प बा. प्रसिद्धि अतना कि सासाराम में एगो सड़क के नाम ‘लोहा सिंह मार्ग’ बा. अखिल भारतीय भोजपुरी कवि सम्मेलन, सिवान (सारण) के सभापति रहनी. इहां के लिखल भोजपुरी कविता बहुत प्रसिद्ध ह. भोजपुरी में मुक्त छंद के प्रयोग जवना सफलता से ‘काश्यप’ जी कइले रहनी ओइसन प्रयोग बहुत कम मिलेला. भोजपुरी में कविता के अलावा इँहा के निबन्ध, कहानी आ उपन्यासो लिखनी. बीएन कालेज (पटना) में हिन्दी के प्रोफेसर रहनी. पद्मश्री, बिहार गौरव, बिहार रत्न जइसन सम्मान से सम्मानित भइनी. 24 अक्टूबर, 1992 के रामेश्वर सिंह ‘काश्यप’ जी के निधन हो गइल.
6. रघुवंश नारायण सिंह:
माथ पऽ टोपी, चमरुआ जूता, खादी के कुर्ता, डाँड़ में खादी के धोती, हाथ में लउर, इहे पहचान रहे स्वतंत्रता सेनानी, भोजपुरी भाषा के पहरुआ रघुवंश नारायण सिंह जी के. भोजपुर जिला के, मुफसिल थाना के पिपरा जयपाल में सन 1903 में रघुवंश जी के जनम भइल रहे. शुरुवाते से चाहें उ मिडील स्कूल के शिक्षा के समय होखे भा हाई स्कूल स्तर के देश के आजादी आ आजादी के लड़ाई में हर तरह से शामिल रहनी रघुबंश जी. कई हाली जेल गइनी, अंग्रेजन के लाठी से कतने हाली वार भइल, सन 1942 के आंदोलन में त गोली से बाल-बाल बाचल रहनी. देस के आजादी के बाद, रघुवंश जी, राजनैतिक जिनगी के तियाग क के साहित्य सेवा में लाग गइनी. आरा नागरी प्रचारणी के ओर से पहिला राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी के अभिनंदन ग्रंथ से ले के आरा बाल हिन्दी बाल पुस्तकालय से भोजपुरी भाषा में ‘भोजपुरी’ मासिक पत्रिका के प्रकासन शुरु करवनी. पहिले एह पत्रिका के संपादन प्रो० विश्वनाथ सिंह जी करत रहनी जवन बाद में रघुबंश जी खुद अपना हाँथ में ले लिहनी. ‘भोजपुरी’ पत्रिका 1967 तक चलल आ एकर तकरीबन 65 अंक निकलल. 12 नवम्बर, 1975 के आरा के माटी से जनमल एह, भोजपुरिया सपूत के निधन हो गइल.
7. शिव प्रसाद ‘किरण’:
22 फरवरी 1922 के उ०प्र० के आजमगढ के माटी पऽ भोजपुरी साहित्य, गीत, कविता, गजल के एगो बड़हन नाव शिवप्रसाद ‘किरण’ जी के जनम भइल रहे. बाबुजी के नाव सरजुग चौधरी आ माई के नाव भीखइन देवी रहे. शिवप्रसाद जी के जनम त भइल आजमगढ में बाकिर इँहा के कर्मभूमि रहे चम्पारण के माटी. ता-उम्र इँहा के बेतिया (बिहार) में रहि गइनी. शिवप्रसाद जी, भोजपुरी के ‘नये गीत आ गीतकार’, ‘भोजपुरी कविता कुंज’, ‘माटी के बोली’, ‘आजादी के सपने’, ‘रिमझिम’, ‘घायल गीत’, ‘सिसकते सरगम’ आदि कई गो किताब लिखनी. इँहा के रचना अनेकन भोजपुरी पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हो चुकल बा. रेडियो से ले के पत्रिका तक संचार के हर माध्यम से शिवप्रसाद किरण जी के गीत-गजल के स्वाद जन-जन के मिलत रहे. भोजपुरी कवि सम्मेलन के लगभग हर मंच पऽ ‘किरण’ जी के सुने के मिलत रहे. 2 मार्च, 2009 के शिवप्रसाद ‘किरण’ जी के निधन हो गइल बाकिर इँहा के लिखल रचना, गीत-गजल आज के समय में अलग-अलग माध्यम से जन-जन तक चहुंप रहल बा.
8. कवि – गीतकार शैलेंद्र:
30 अगस्त, 1923 14 दिसंबर, 1966 ओइसे तो उहां के घरइया नाव केसरीलाल शंकरदास रहे बाकि दुनिया उहां के शैलेंद्र के नांव से जानेले. ओईसे उहां के जनम तो रावलपिंडी में भइल, बाकि उहां के मूल गाँव भोजपुर जिला के धुसपुर गाँव रहे. शैलेंद्र के नाव भारतीय साहित्य-संगीत अउरी सिनेमा जगत में अमर बा. हिंदी सिने गीतकारन के चरचा चलेला त बड़ से बड़ जानकार लोग कहेला कि अब ले शैलेंद्र के जोड़ा के केहू गीतकार हिंदी सिनेमा जगत में ना भइल. अइसन कहे के पाछे ठोस आधारो रहे. मशहूर संगीतकार शंकर जयकिशन के संगे जोड़ी बना के, खास कई के राजकपूर के फिलिमन खातिर उहां के ना जाने केतना कालजयी-सदाबहार गीतन के लिखनी. बाकि शैलेंद्र के ई एगो मजबूत पहचान रहे. उहां के एगो अउरी कालजयी पहचान भोजपुरी गीतकार के रूप में बा. भले शैलेंद्र कबो आपन पुरखन के मूल गाँव भोजपुर जिला के धुसपुर गाँव में ना रहनी, भले उहां के दु पीढ़ी पहिलहीं लोग रोजी-रोजगार खातिर गाँव से चल गइल रहे बाकि एह कारण से शैलेंद्र के कबो आपन माईभाषा भोजपुरी से लगाव-जुड़ाव अउरी अपनापा के रिश्ता कम ना भइल. 1963 में भोजपुरी के जब पहिलका फिलिम ‘ हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़ईबो’ बन के तइयार भइल, अउरी लोग ओकर गीतन के सुनलस त पूरा भोजपुरिया इलाका में अउरी दोसर भाषाभासी समाजो में जबान पर चढ़ गइल. कारण रहे भोजपुरी के पहिलका सिनेमा के गीतकार शैलेंद्र रहनी. उहां के एतना सहज-सरल भाषा में ओह सिनेमा के अईसन मनभावन गीतन के रचनी अउरी भोजपुरीये इलाका के लाल चित्रगुप्तजी अईसन मनभावन संगीत दिहनी कि ओह सिनेमा के गीत अमर हो गइल. भोजपुरी के पहिलका सिनेमा 1963 में आइल अउरी दुर्भाग्य ई रहल कि ओकरा दु-तीन साल बाद 1966 में ही शैलेंद्र दुनिया से विदा हो गइनी, ना तो जवना तरीका से उहां के आपन माईभाषा के दिल में बसवले रहीं, जेतना प्यार करत रहीं, जेतना उहां के आपन माईभाषा पर पकड़ रहे, उहां के आगे भोजपुरी सिनेमा खातिर ना जाने केतना अउरी कालजयी गीत रचतीं. शैलेंद्र के जीवन भोजपुरिया समाज खातिर सनेस बा कि रउआ रोजी-रोजगार भा कवनो कारण से अपना गाँव, अपना शहर से दूर रह सकत बानी, आन-जान कम हो सकत बा, भौगोलिक दूरी रह सकत बा बाकि माईभाषा एगो अईसन चीज हियऽ, जे हमेशा दिल में रहेले। ओकरा से अथाह प्यार रहेला.
9. मैनावती देवी ‘मैना’:
बिहार के सिवान जिला के पचरुखी गाँव में 1 मई 1940 के मैनावती श्रीवास्तव ‘मैना’ जी के जनम भइल रहे. बाकिर इहां के कर्मभूमि गोरखपुर रहे. अपना शुरुवाती शिक्षा के बाद जब मैनावती देवी जी गोरखपुर आकाशवाणी संगे जुड़नी त बस गोरखपुर के हो रहि गइनी. भोजपुरी पारंपरिक, सांस्कारिक गीतन के अपना आवाज से जन-जन तक पहुंचवनी. मैनावती जी भोजपुरी लोकगीतन के संवर्धन आ प्रचार प्रसार में बहमुल्य योगदान देले बानी. इहाँ के लिखल रचना / किताब जइसे 1977 ‘गाँव के दो गीत’, ‘श्री श्री सरस्वती चालीसा’, ‘श्री श्री चित्रगुप्त चालीसा’, ‘पपिहा-सेवाती’, ‘पुरखन के थाती’, ‘कचरस’, ‘याद करे तेरी मैना’, ‘चोर के दाढ़ी में तिनका’ आ ‘बेघरनी घर भूत के डेरा’ आदि बा. ‘भोजपुरी लोक साधिका’, ‘भोजपुरी शिरोमणि’, ‘भोजपुरी रत्न सम्मान’, ‘भिखारी ठाकुर सम्मान’, मैनावती जी के भोजपुरी लोकगीत आ साहित्य के अद्वीतीय सेवा खातिर मिलल. इहें के गावल भोजपुरी लोकगीत “गाई के गोबरे महादेव” आजो घर-घर में गवाला आ लगभग हर भोजपुरी संस्था के स्वागत गीत के रुप में गावल जाला. 16 नवम्बर, 2017 के मैनावती जी के निधन हो गइल.
10. बिजेंद्र अनिल:
बगेन, बक्सर, बिहार में 21 जनवरी 1945 के विजेंद्र अनिल जी के जनम भइल रहे . भोजपुरी भाषा आ साहित्य जगत में विजेंद्र जी के नाव जनगीत गीतन खातिर लिहल जाला. इँहा के लिखल भोजपुरी गीतन में जनता के आवाज रहेला आ सत्ता के खिलाफ तंज. हिन्दी आ भोजपुरी में विजेंद्र अनिल जी समानांतर लिखत रहनी आ इँहा के लिखल भोजपुरी गीत आजो लोगन के जबान पऽ बइठल बा. ‘आग का तूफ़ान’ (1963) कविता-संग्रह, ‘फ़ाइलें’, ‘तापमान’ (लम्बी कविताएँ), ‘विस्फोट’ (1984), ‘नई अदालत’ (कहानी-संग्रह), ‘उमगल जनता के धार’ (1988), ‘विजेन्द्र अनिल के गीत’ (भोजपुरी गीत संग्रह) आदि किताब इँहा के प्रकासित भइल बा. अनेकन गो मंच से आ पत्र-पत्रिका में इँहा के रचना प्रकाशित हो चुकल बा. 3 नवम्बर, 2007 के विजेंद्र अनिल जी के निधन हो गइल.
11. प्रभुनाथ सिंह:
2 मई, 1940 के मुबारकपुर (सारण, बिहार) में प्रभुनाथ सिंह जी के जनम भइल रहे. अर्थशास्त्र में एमए पीएचडी प्रभुनाथ जी भोजपुरी के बरिआर पहरुआ रहनी । भोजपुरी में ‘हीरा-मोती’ (काव्य-संग्रह) , ‘ई हमार गीत’ (काव्य-संग्रह) , ‘गांधी जी के बकरी’ (ललित – निबंध) , ‘हमार गाँव हमार घर’ (कहानी संस्मरण आ ललित निबंध) ‘पड़ाव’ (कहानी आ ललित निबंध) किताब प्रकाशित हो चुकल बा. प्रभुनाथ जी लगभग तीस गो से बेसी पीएचडी शोध प्रबंध के निर्देशन क चुकल बानी. लगभग चालीस गो से बेसी सेमिनार आ सम्मेलन में भाग ले चुकल बानी. बिहार विधानसभा के सदस्य, राज्यमंत्री (वित्त मंत्रालय) बिहार सरकार के अलावा प्रभुनाथ जी अलग अलग मैनेजमेंट कालेज, विश्वविद्यालय, कालेज में प्रोफेसर / विभागाध्यक्ष रहल बानी. बेस्ट बुक आन मैनेजमेंट अवार्ड 1981 पटना, मैन आफ द ईयर अवार्ड, अमेरिका से सम्मानित हो चुकल बानी. भोजपुरी भाषा आ साहित्य के ले के प्रभुनाथ जी के योगदान अप्रतिम रहल बा. भोजपुरी भाषा के संस्थागत पहचान प्रभुनाथ सिंह जी के ही दियवावल ह आ इँहे के माध्यम से भोजपुरी विभाग आ प्रोफेसर के नियुक्ति के शुरुवात भइल. 29 मार्च, 2009 के प्रभुनाथ जी अपना अंतिम यात्रा प निकल गइनी.
12. भरत सिंह भारती:
जनमतिथि: 20 नवंबर, 1936 भरत सिंह भारती मने भोजपुरी लोकसंगीत में एगो अईसन नाव, जे पिछिलका सात दशक से साधक लेखा आपन माईभाषा के सौंदर्य के बखानत, गरिमा के बरतत, महिमा बढ़ा रहल बा. आकाशवाणी के ए हाईग्रेड के कलाकार भरत सिंह भारती उ कलाकार हईं, जे आकाशवाणी पर गीत गा के पूरा पुरबिया समाज के मानस में रच-बस गइनी. आकाशवाणी पर जब उहां के गीत बाजत रहे तो पूरा परिवार एक साथे गीत सुनत रहे. भारती जी आजीवन अईसने गीत गइनी, जे पूरा परिवार संगे सुनल जा सके. भोजपुरी लोकसंगीत के दुनिया में तमाम उतार-चढ़ाव, आंधी-तुफान देख अउरी झेल चुकल भारतीजी आपन माई भाषा के मान-मरजाद-गरिमा के बनवले रखनी, बढ़ावत रखनी. भोजपुर जिला के नोनउर गाँव के वासी भारती जी जब छव साल के रहीं, तबे उहां के पिताजी दुनिया से गुजर गइनी. पिताजी ढोलकिया रहुवीं बाकि भारतीजी के उहां के मार्गदर्शन अउरी नेह से वंचित रह गइनी चुकि सुर-लय-ताल खून में मिलल रहे त बचपने से ईहों के तबला सीखे शुरू कइनी अउरी गावे के अभ्यास. फेरू त तबला बजा के पुरबी से लेके एक से बढ़ के एक गीत गावे लगनी. ई एगो नवका आश्चर्य के ही विषय रहे कि कवनो अइसन कलाकारो बा जे तबला बजवते साथे-साथे गवनइयो करेला. एकरा साथे उहां के गीत-संगीत अउरी गवनई में लगातार प्रयोगो करत रहनी, जेकरा से भोजपुरी के अधिक से अधिक राग-रंग सामने आवत रहल. महेंदर मिसिर अउरी विश्वनाथ सैदा जईसन रचनाकारन के गीत के स्वर देनी बाकि उहां के जादे गीत चाहे तो खुदे लिख के, खुदे कंपोज कर के गइनी चाहे फेरू गाँव के गलियन से गीत उठा के, ओकरा के विकसित कर के गवनी. उहां के नयका बिहान नाम से भोजपुरी गीतन के संग्रह पुस्तक छपल बा, सप्त सरोवर नाम से किताब छपे के प्रक्रिया में बिया. भारतीजी भोजपुरी लोकसंगीत में माटी के गीत-संगीत अउरी प्रयोगधर्मिता के एगो आइकन हईं, ध्वजवाहक हईं.