तिलौथू के कैमूर पहाड़ी की वादियों में ट्रेकिंग का अनुभव

कहते है कि सफर मंज़िल से भी ख़ूबसूरत होती है, बात भी सही है मगर जब मंज़िल एक सरप्राइज़ की तरह सामने आए तो उसे शब्दों में बुनना उतना ही कठिन होता है. तो उस दिन था शुक्रवार और हम सवेरे-सवेरे उठ कर तैयार हुए. सुबह का मौसम और रोड पर कम हलचल हमें खिड़की के बाहर देखने को मजबूर कर रहा था. खाली पेट हम सब आज तिलौथू प्रखंड के कैमूर पहाड़ी की ऊंचाई पर चढ़ने का प्लान बना रहें थे. रोड पार हुआ तो हम एक गांव में घुसे, पिछली बार भी मैं जब यहां आई थी तो ये गांव की बनावट ने मुझे आकर्षित किया था और इस बार भी कोई कसर बाक़ी नहीं थी. खेत के बीच सजा हुआ दो पेड़ और चारों ओर हरियाली.

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तुतला भवानी रोहतास जिले का एक प्रसिद्ध धाम है, यहां पर माता का मंदिर है जो अभी के समय में लगभग दो किमी चल कर जाना होगा क्योंकि अभी वहां पर रास्ता बन रहा है. थोड़ी दूर पर एक बड़ा सा ग्राउंड बना हुआ है गाड़ी पार्क करने के लिए और एक छोटा चार कमरों वाला ‘आर्यन गेस्ट हाउस’ जो बिल्कुल भी आपकी कल्पना के हिसाब से नहीं है. आशीष वहां आता-जाता है तो वहां के लोकल लोग आशीष को एकदम अपने जैसा मानते है. हम थोड़ी देर गेस्ट हाउस के अंदर बैठे और मैगी का पैकेट जो हम लेकर चले थे उस बनने के लिए दिया. हम चारों आराम से बैठे थे, चार नहीं हमारे हीरो को कैसे भूल गए. आशीष की बात नहीं कर रही, हमारे साथ ड्राइव करने वाले दिलीप भैया जो बस गाड़ी नहीं चला रहे थे बल्कि पूरे सफर का आनंद उन्होंने भी क्या खूब उठाया, वो नहीं होते तो हम इतने जगहों पर शायद ही जा पाते. तो हम पांचों बैठे थे और आशीष इधर-उधर बातचीत करता हुआ सब प्लान कर रहा था, उसको जब वैसे देखा तो लगा इसमें एक अलग जुनून है और वो जुनून ही इसको यहां पहुंचाया है. मैगी जो कभी दो मिनट में नहीं बनती उसने हमें काफ़ी लम्बा इंतज़ार करवाया मगर स्वाद लाजवाब था. थोड़ा सा हमनें पैक भी कर लिया कि ऊपर जाकर कुछ खा सके. पानी और फल के साथ हम अपने ट्रेक के लिए तैयार हो गए.

तुतला भवानी वाटरफॉल

दो किमी चलने के बाद पानी का तालाब पार करके जाना थोड़ा मुश्किल था, एक पत्थर से दूसरे पत्थर पर डर-डर के पैर रखते हुए हम बढ़ने लगे, लोकल में हमारे साथ चार लोग थे, एक रितेश जी और अंकित जिनसे मैं पहले भी मिली थी, साथ में अभिषेक और सूर्या जो शायद कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे थे. अभी वहां पर एक झूला पूल बना भी है मगर अभी उसपर काम चल रहा है जिसके कारण हमें तालाब को पार करके जाना पड़ा. पार करते वक़्त मुझे डर भी लग रहा था तभी मेरे सामने से एक आदमी अपने गोद में दो छोटे बच्चे लिए पार कर रहा था, कई बार वो मेरे सामने से गुज़रा, उसे देखकर मैंने सोचा कि मैं यहां खुद संभल कर जा नहीं पा रही और ये अपने साथ दो बच्चें भी संभाल रहा है. पानी पार करके जब हम तुतला भवानी के झरने के पास पहुंचे तो वहां पानी का बहाव इतना तेज़ था की पूरे शरीर पर एक ठंडी हवा और पानी की बूंदें पड़ रही थी. हम सब पत्थर पर आराम से बैठ गए और पांच मिनट तक उस हवा को महसूस किया.

चेहरा पूरा गीला हो चुका था और कपड़े पर छिटे पड़े थे, फ़ोटो क्या ले पाते, कैमरा का लेंस पानी से धुंधला हो रहा था. अब बारी थी ट्रेक के लिए पहाड़ पर चढ़ने की, तो हम वहां से लौटने लगे तभी काजल का पैर पत्थर पर फिसला और उसे ज़ोर की चोट लगी. एक दो जगह पैर कट गया और दाहिने पैर की हड्डी में चोट आ गई. फिर भी वो तुरन्त उठ खड़ी हुई और पत्थर पार करने लगी.

असली सफ़र तो अब शुरू होना था. सबसे आगे अंकित चल रहा था उसके पीछे हम, अंकित चौथी बार इस पहाड़ पर जा रहा था. चलते समय उसने बताया कि यहां बहुत कम लोग जाते है, हमलोग घूमने-फिरने के शौकीन है तो आए हुए है, रास्ता थोड़ा पतला और मुश्किल है इसलिए लोग जाते नहीं, शायद ही कोई औरत कभी गई होगी इस रास्ते से. हम ऊपर चढ़ाई करने लगे और सांस फूलती गई. थोड़ी दूर तक बस कांटों वाले झाड़ी को पार करना था फिर दाहिने ओर चड़ाई शुरू हुई और वहां से रास्ता पतला होता शुरू हुआ. एक बार में एक पैर ही रखा जा सकता था और उस वक़्त रुकने के बारे में बिना सोचे बस आगे वाले के पैर को देखते हुए हम सब बढ़ते जा रहे थे, नीचे देखने का मन नहीं हो रहा था क्योंकि अगर नीचे देखते तो डर और बढ़ जाती.

एक बार बीच में मुझे लगा मेरे से नहीं चला जाएगा, मेरे शरीर का ग्लूकोज लेवल कम हो गया और मैंने एक पत्थर देखकर वहां बैठ के पानी पिया और एक केला खाया. फिर जैसे ही थोड़ी एनर्जी मिली चलना शुरू किया. कई जगह हाथ और पैर छिल गए मगर अब तो अंत तक जाना था, बिना ये जाने कि हम वहां देखने क्या वाले हैं. वैसे मैंने आपको ये नहीं बताया कि हम ऊपर जा क्यों रहें थे, तुतला भवानी का जो झरना लोग देखते हैं वो ऊपर से दो झरनों को पार करके नीचे आता है, मतलब कि उसका स्त्रोत पहाड़ के ऊपर से गिर रहें दो झरने से होकर आता है. आशीष और ऋषि ने ये ड्रोन शॉट में देखा था और यहां पहुंचने का प्लान बना रखा था. आठ सौ फीट की ऊंचाई पर जाने के लिए एक जगह झाड़ी के पास से नीचे की ओर चलना था और झाड़ी सबसे ज्यादा डरावनी थी, ना आप आगे देख पा रहे थे ना आप कुछ समझ पा रहे थे बस किसी तरह पैर आगे पड़ते गए और हम एक जगह पहुंचे जहा झाड़ी खत्म हुई और पत्थरों से घिरा हुआ वो जगह खुले आसमान के नीचे चारों ओर हरे भरे पेड़ से सजा था, सबके चेहरे पर सुकून की मुस्कान आई. मैंने जैसा शुरू में कहा था कि अगर मंज़िल सरप्राईज़ की तरह सामने आ जाए तो वो एक अलग अनुभव होता है.

झरने का दूसरा छोर वहां पर तालाब जैसे नीचे बह रहा था और पानी की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि हम दूर जाने पर एक दूसरे की आवाज़ सुन नहीं पा रहें थे. थोड़ा और आगे जाने का रास्ता था जो सबसे पहले झरने के पास जाता था. वो झरने का पानी एक तालाब में गिरता और वो तालाब से पानी बह कर दूसरे झरने में और फिर वहां से नीचे जाकर तुतला का झरना हमें दिखाई देता है.

तीन घंटे हम ऊपर रहें, ना नेटवर्क ना कोई लोग बस जानवर में हमनें बंदर देखे. पानी की लहर खुले आसमान से नीचे और हल्की धूप में पानी में बैठकर हमनें प्रकृति को बड़े करीब से महसूस किया. एक जगह पर सब कुछ सजा हुए था, नीला आसमान, पानी, हवा, धूप, पेड़ और जानवर. प्रकृति को किसी बाहरी श्रृंगार की जरूरत नहीं, मैंने ये पहले भी कहा था.

लौटने वक़्त डर और तेज़ था क्योंकि फिर से उसी रास्ते से होकर जाना था और लौटने समय मेरे दाहिने पैर के नाखून में चोट आई और खून बहने लगा, बिना कुछ सोचे आशीष ने अपना स्लीपर मुझे दे दिया ताकि मेरे उंगली में बंद स्लीपर से दर्द ना हो और हम नीचे पहुंच गए. जाकर हम आराम से एक शेड के नीचे बैठ गए और आशीष ड्रोन से कुछ शॉट्स लेने चला गया, थोड़े देर में मालूम चला कि ड्रोन कहीं फंस गया है और फिर कुछ समय बाद आशीष पहुंचा, गीले और गंदे कपड़े में. ड्रोन के लिए Tarzan जैसे पेड़ो के बीच से रितेश जी के मदद से ड्रोन निकाल ही लाया. ये तो रहीं मज़े की बात, एक अनुभव थोड़ा बुरा रहा, वहां एक वॉशरूम भी नहीं था, एक बन भी रहा है तो पार्किंग के पास, अब मुश्किल हुई मुझे और काजल को. बात वही है कि थोड़ी सुविधा मिल जाए तो लोग जो यहां रोज तुतला भवानी का झरना देखने आते है उन्हें थोड़ी आसानी हो जाएगी.

नोट- बिना स्थानीय लोगों के मदद से तुतला भवानी के कैमूर पहाड़ी पर चढ़ाई न करें.

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