एक जमाना था जब रोहतास के अमझोर में देश का नंबर वन सल्फर का उत्पादन होता था. दुनिया भर में पीपीसीएल पाराइट्स सल्फर गंधक से बने उत्पाद कृषि कार्य के उपयोग में भेजे जाते थे. रोहतास प्रखंड के अमझोर में जहां देश का नंबर वन सल्फर का उत्पादन होता था.
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यह बात 90 के दशक की है, जब यहां दिन और रात में फर्क करना लोगों के लिए मुश्किल हुआ करता था. चारों तरफ चकाचक बिजली, अस्पताल, स्कूल, पीपीसीएल के कारखाने में करीब दो हजार से अधिक स्थायी कर्मचारी काम करते थे. पांच से दस हजार लोगों को रोजगार मुहैया हुआ करता था.
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दरअसल रोहतास जिले में 300 मिलियन टन सामान्य ग्रेड का पाइराइट (40% सल्फर) और 1500 मिलियन टन का निम्न क्षारीय पाइराइट भंडार है. देश के इस विशालतम पाइराइट भंडार को देखते हुए उसे उपयोग में लाने एवं उर्वरक के निर्माण हेतु अमझोर मे 1960 में पीपीसीएल की स्थापना की गई तथा सादे एवं सल्फ्यूरिक एसिड लगाने की योजना बनी. सन् 80 के दशक में अमझोर में पाइराइट का खनन प्रारंभ हुआ. इसका एक मात्र खरीददार भारतीय उर्वरक निगम, सिंदरी था. आगे चलकर सिंदरी ने पाइराइट क्रय करना बंद कर दिया, जिससे अमझोर में खनन गतिविधियां बंद हो गई.
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भारत सरकार ने 1987 में यहाँ पाइराइट पर आधारित फास्फेटिक उर्वरक कारखाने की स्वीकृति प्रदान की और 27 मई 1987 को भारत सरकार के तत्कालीन रसायन एवं उर्वरक मंत्री आर प्रभु ने पीपीसीएल के फास्फेटिक फर्टिलाइजर प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी. तब यहां का खाद कारखाना पूरे देश में सिंगल सुपर फास्फेटिक फर्टिलाइजर का निर्माण करने वाला एक मात्र कारखाना था.
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दिसम्बर 1989 में इस प्रोजेक्ट से ‘सोन गंगा’ सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक का उत्पादन प्रारंभ हो गया, जिसकी उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 300 टन की थी. उत्पादन क्षमता को पूरा करने पर केंद्र सरकार ने उत्पादन दक्षता पदक प्रदान किया था. 1996 आते-आते यह उद्योग रुग्ण हो गया. कम्पनी का घाटा बढ़ता गया. अंततः केंद्र सरकार के डिसइन्वेस्टमेंट कमीशन ने इसे बेचने की सिफारिश कर दी. वर्ष 1999 के अप्रैल माह तक प्लांट परिचालित हुआ उसके बाद बंद हो गया.
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पीपीसीएल को डिसइन्वेस्टमेन्ट कमीशन की रिपोर्ट से हटाने के लिए राज्य के विभिन्न दलों के सांसदों ने 2001 में प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी से गुहार लगाई. प्रधानमंत्री ने तत्कालीन कृषि मंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में वित्त तथा रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की एक टीम का गठन किया. 28 अगस्त 2002 को इस तीन सदस्यीय समिति ने कारखाना खोलने के बदले वाइंडअप करने का निर्णय लेते हुए स्वीकृति हेतु प्रस्ताव मंत्रिमंडल के पास भेजने का निर्णय लिया. कारखाना बेचने हेतु बोर्ड फार इंडस्ट्रीयल एंड फाइनेंसियल रिकंस्ट्रक्शन (बीआईएफआर) ने स्टेट बैंक को ऑपरेटिंग एजेंसी नियुक्त किया. इस निर्णय से 2000 कर्मचारियों और 10,000 आश्रितों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई. अंततः 26 सितम्बर 2007 को इस कारखाने को पटना उच्च न्यायालय के शासकीय समापक ने हस्तांतरित कर लिया है.
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अब क्या हो सकता है आगे: भारत को आज भी तात्विक गंधक का आयात करता है जबकि अमझोर में इसका अयस्क भरा पड़ा है. वहीं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रिफायनरी बाय प्रोडक्ट में सल्फर की मांग ज्यादा है. सल्फर का आयात आज भी भारत को करना पड़ता है. भारत चाहे तो सल्फर का खनन का काम शुरू कर आयात में कमी ला सकती है. विदेशी मुद्रा को बचा सकती है. केंद्र और बिहार सरकार अगर पहल करे तो सल्फर का बंद पड़ा खनन पुनः चालू हो सकता है.
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